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भद्रबाहु संहिता
जिसके ललाट में तीन रेखायें हो उसकी साठ तथा जिसके ललाट में दो रेखायें हों उसकी बीस वर्ष की आयु समझनी चाहिये—ऐसा नारद का वाक्य है।
कुचैलिनं दन्तमलप्रपूरितम् बह्नाशिनं निष्ठुरवाक्यभाषिणम् । सूर्योदये चास्तमये च शायिनं विमुञ्चति श्रीरपि चक्र5- पाणिनम् ॥
मैले वस्त्र को धारण करने वाले, दाँत के मल को साफ न करने वाले, बहुत खाने वाले, कटु वाक्य बोलने वाले, सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सोने वाले पुरुष को वे चाहे विष्णु ही क्यों न हों लक्ष्मी छोड़ देती हैं ।
यवो
यस्य
अंगुष्ठोदरमध्यस्थो उत्तमो
भक्ष्यभोजी च नरस्स
जिसके अंगूठे के उदर (बीच) में जौ का चिह्न हो उत्तम भोग को प्राप्त करता हुआ सुख की वृद्धि पाता है।
अतिमेधातिकीर्तिश्च अस्निग्धचैलि
विराजते ।
सुखमेधते ॥
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तथा ।
अतिक्रान्तसुखी निर्दिष्टमल्पमायुर्विनिर्दिशेत् ॥
जो मनुष्य अत्यधिक बुद्धिमान्, अतिशय कीर्तिमान् और अत्यन्त सुखी तथा मलिन वस्त्रधारी रहता है-वह अल्पायु होता है ऐसा जानना चाहिये ।
रेखाभिर्बहुभिः क्लेशी रेखाल्प- धनहीनता । रक्ताभिः सुखमाप्रोति कृष्णाभिश्च वने वसेत् ॥
हथेली में बहुत रेखायें हों तो मनुष्य दुःखी एवं कम हों तो निर्धन होता है । रेखायें यदि लाल हों तो सुख और काला हों तो वनवास होता है ।
श्रीमान्नृपश्च रक्ताक्षो निरर्थः कोऽपि सुदीर्घं बहुधैश्वर्य्यं निर्मांसं न च वै
पिङ्गलः ।
सुखम् ॥
आँखें लाल हों तो धनवान और राजा, पिङ्गलवर्ण की हों तो निर्धन, बड़ी-बड़ी
हों तो ऐश्वर्य्यवान और मांस हीन हों (धँसी हुई हों) तो दुःखी जानना चाहिये ।
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