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भद्रबाहु संहिता
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दीसए) काग पद स्पष्ट लिखा हुआ नजर आता है (खिप्पं सो धण मज्झइ) वह धन भी शीघ्र कमाता है (पुणो विणासइ खणे दवं) और शीघ्र गमाता भी है।
भावार्थ-जिसके हाथ में कागपद स्पष्ट लिखा हुआ दिखे तो ऐसा पुरुष धन शीघ्र कमाता भी है, और गमाता भी है।
हुँति धणविहुअधणा बहुरेहा देहि एहिं हत्थेहि।
आलिअकरमणुस्ता पीडपरायणा हुंति ॥५४॥ (बहुरेहा देहि एहिं हत्थेहिं) जिसके हाथों में बहुत रेखाएं हो (हुतिधणाविहुअधणा) तो वह धनवान होते हुए भी निर्धन बन जाता है, (आलिअकरामणुस्सा) जिसका हाथ खाली हो, रेखा रहित हो, वह मनुष्य (परपीडपरायणाहुति) पर पीड़ा परायण होता है।
भावार्थ-जिसके हाथ में बहुत रेखाएं हो वह व्यक्ति धनवान भी हो तो हुए निर्धन बन जाता है और जिसका हाथ रेखा से रहित हो तो, वह मनुष्य परपीड़ा में परायण होता है।
फुडिआपगूढगुप्पा विरलंगुलि विसम पत्वसंपण्णा। णिम्मंसा कठिण तला ए ए परकम्म कराहोंति ॥५५॥
(ए ए) जिसके हाथ (फुडिआपगूढगुप्पा) फैले हुऐ हो फटे हुऐ हो जिनके गुल्म गठे हुऐ हो (विरलंगुलि विसम पत्वसंपण्णा) अंगुलियाँ विरली, और विषम पर्ववाली हो (णिम्मंसा कठिण तला) मांस रहित हो कठोर हाथ हो तो (परकम्म कराहोंति) वह मनुष्य दूसरे की नौकरी करने वाला होता है।
भावार्थ-जिसके हाथ फैले हुए हो, फटे हुए हो, गुल्म गठे हुऐ हो, अंगुलियाँ विरल हो विषम पर्व हो मांस रहित हो कठोर हथेली हो तो ऐसा मनुष्य दूसरे की नौकरी करने वाला होता है।