________________
भद्रबाहु संहिता
नखों के फल मज्झुण्णया य सोणा अप्फुडिया जस्स हुँति करणहरा।
सो राया धणवंतो विजाहिवई पसिद्धो अ॥45॥ (जस्स) जिसके (करणहरा) हाथ के नाखून (मज्झुण्णया य सोणा अप्फुडिया) मध्यमें उठे हुए हो और लाल हो टूटे-फूटे न हो तो (सो) वह मनुष्य (राया धणवंतो) राजा व धनवान होता है (विज्जाहिवई पसिद्धो अ) विद्यावान प्रसिद्ध होता है।
भावार्थ-जिसके हाथ की अंगुलियों के नाखून बीच में उठे हुऐ हों । लाल हो टूटे-फूटे न हो तो ऐसा मनुष्य राजा व धनवान होता है। विद्यावान प्रसिद्ध होता है। 45।
तराह मिहिर का मत ऐसा कहता है! कि यदि नाखून तुष के समान रेखा युक्त हो और रूखे हो तो वह व्यक्ति नपुंसक होता है। और चपटे और फटे हुऐ नाखून धनहीन व्यक्ति के होते हैं। बुरे व वर्ण रहित नाखून परामुखापेक्षी होता है। जिनके ताम्रवर्ण के रंग वाले नाखून हो तो समझो वह सेनापति होता है।
मत्स्यादि का फल बाहिरमुहसंठाणे मच्छपये मीन से फलं होइ।
अभंतराणणे पुण होहत्ति णिरंतरं सुक्खं ॥ 46।। (बाहिर मुहसंठाणे मच्छपये) यदि बाहर मुख किये हुऐ हाथ में मच्छ हो तो (मीन से फलं होइ) बुढ़ापे में उसका फल होता है (अभंतराणणे पुण) यदि अभ्यंतर की ओर मुख किए हुए मच्छ हो समझो (णिरत्तरं सुक्ख होहत्ति) वह उसको निरन्तर सुखी रहता है।
भावार्थ-यदि बाहर मुख किये हुए हाथ में मच्छ हो तो समझो बुढ़ापे में सुख प्रदान करता है। और अन्दर की ओर मुख किये हुए मच्छ हो तो समझो उसको निरंतर सुख प्राप्त कराता है।। 46॥