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कर हस्त रेखा झार
(कुलरेहाए उवार मूलम्मि) यदि कुल रेखा के ऊपर (पएसिणीइ जा रेहा) प्रदेशिनी के मूल में रेखा हो तो (गुरु देव समरणं) गुरु देव का स्मरण (तस्स सा वि णिद्देसइपुरिसस्स) और देवता का स्मरण होता रहेगा, ऐसा निर्देश किया गया
भावार्थ- यदि कुल रेखा के ऊपर प्रदेशिनी के मूल में रेखा हो तो वह रेखा गुरु व देव का स्मरण कराती रहती है। अर्थात् वह देव गुरु का परम भक्त होता है।। 4211
अंगुली अंगूठे के ऊपर भौरी का फल अंगुलिअंगुठुरि हवंति भमराउ दाहिणावत्ता।
धणभागी जगपुज्जो धम्ममई बुद्धिमतो अ॥ 43॥
(अंगुलिअंगुट्टवरि) अंगुली और अंगूठे के ऊपर (दाहिणावत्ता भमराउ हवंति) दाहिनी की भौरी घुमती हुई हो तो (धण भागी जगपुज्जो) वह पुरुष धन का भोग करने वाला, जगत्पूज्य (धम्ममई बुद्धिमंतोअ) धर्म में बुद्धि रखने वाला होता है।
भावार्थ-अंगूली और अंगूठे के ऊपर यदि दाहिनी ओर घुमाव लेकर भौरी होती है। तो वह पुरुष धन का भोग करने वाला जगत्पूज्य व धर्म में बुद्धि रखने वाला होता है। अर्थात् धर्मात्मा होता है। 43 ।।
पावड़ पच्छा सुक्खं पच्छिममुहसंठिए सुणह संख्ने ।
अब्भंराणणे पुण होहीसि णिरंतरं सोक्खं॥4॥ (पच्छिममुहसंठिए सुणह संखे) यदि अंगुलियों के ऊपर पच्छिमाभिमुख किये हुए शंख हो तो (पावइ पच्छा सुक्खं) ऐसा व्यक्ति बुढ़ापे में सुख पाता है (अब्भंतराणणे पुण) अगर वहीं शंख अभ्यंन्तर मुख को लिये हुए हो तो (णिरंतरं सोखं होहीसि) ऐसा पुरुष निरन्तर सुख को पाता है।
भावार्थ-यदि अंगुलियों के ऊपर पश्चिमाभिमुख शंख हो तो ऐसा मनुष्य बुढ़ापे में सुख को पाता है। यदि वहीं शंख अभ्यन्तर की ओर मुख किये हुए हो तो वह मनुष्य निरन्तर सुख को पाता है। 44 ||