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हस्त रेखा ज्ञान
५. अपने उचित स्थान से इधर-उधर हटे हुए। उक्त प्रचार के ग्रह क्षेत्रों का सामान्य प्रभाव निम्नानुसार होता है— १. सामान्य उन्नत-बुद्धिमता तथा सौभाग्य-सूचक। २. अत्यधिक उन्नत-अशुभ, सामान्य उन्नत से विपरीत फलदायक। ३. समतल सामान्य स्थिति के द्योतक। ४. निम्न-अशुभ प्रभावी, विषयासक्ति से द्योतक ।
५. स्थान भ्रष्ट-जिस दूसरे पर्वत की ओर झुकाव हो उसके प्रभाव को कम कर देने वाला तथा अपने ही प्रभाव में क्षीण।
विशेष-अपने उचित स्थान पर स्थित पर्वत पूर्ण फलदायक होते हैं। जो पर्वत किसी अन्य पर्वत के झुकाव के कारण दब गया हो अथवा जिस पर्वत का अभाव ही हो उसका फल नष्ट हो जाता है।
स्थान भ्रष्ट पर्वतों में केवल गुरु, शनि, सूर्य, बुध, तथा मंगल पर्वत ही हो सकते हैं। गुरु का पर्वत शनि राहु अथवा मंगल (द्वितीय) के पर्वत की ओर; शनि का पर्वत गुरु, सूर्य अथवा राहु (प्लूटो) के पर्वत की ओर सूर्य का पर्वत शनि, बुध अथवा राहू (प्लूटो) के पर्वत की ओर तथा बुध का पर्वत सूर्य अथवा चन्द्र (हर्षल) के पर्वत की ओर झुका हुआ हो सकता है। कुछ विद्वान चन्द्र क्षेत्र का केतु क्षेत्र की ओर तथा केतु क्षेत्र का चन्द्र पर्वत की ओर झुकाव होना भी संभव मानते हैं।
ग्रह क्षेत्रों पर विचार करते समय उनकी पुष्टता, सौंदर्य एवं विस्तार पर भी ध्यान देना चाहिए। पुष्ट ग्रह-क्षेत्र शुभ फलदायक तथा अपुष्ट, विवर्ण एवं ढीले मांस वाला ग्रह क्षेत्र अशुभ फल देने वाला होता है। उन्नत पर्वत जातक की आध्यात्मिक, मानसिक तथा बौद्धिक सुरुचि एवं उन्नति को प्रकट करते है तथा दबे हुए पर्वत मनोविकार, पाशविक वृत्ति एवं विषय-वासना की ओर रुचि को प्रदर्शित करते
यदि हाथ की सभी अंगुलियां सीधी, पुष्ट तथा अच्छी स्थिति में हों, सभी रेखायें स्पष्ट, सुन्दर तथा शुभ प्रभावशाली हों, सभी ग्रह क्षेत्र उन्नत तथा शुभ हों तो ऐसा जातक यशस्वी, धनी, धर्मात्मा, गुणी, विद्वान, सदाचारी तथा दीर्घायु होता