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भद्रबाहु संहिता
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है । किन्तु अच्छा कुछ भी नहीं कर सकते। वे किसी के बीच में बोल सकते है । किन्तु सुनने वालों के विषय की गहराई से भी प्रभावित नहीं कर सकते हैं। जब मनुष्य की मस्तिष्क रेखा स्पष्ट तथा सीधी हो तो उसकी स्वाभाविक चपलता से ज्ञात होता है कि वह उन्नति करता है।
साधारण हाथ (The Elementy )
जैसा कि नाम से प्रतीत होता है, साधारण हाथ निम्न श्रेणी का हाथ है। यह जानवरों की जाति से कुछ ही ऊँचा है। इसकी शक्ल बहुत छोटी होती है, मोटी तथा कठोर भी होती है (चित्र 1 भाग 2 ) | साथ ही में यह बतला देना चाहता हूँ। कि हाथ जितना भी छोटा और मोटा होगा वह मनुष्य उतना ही कठोर, निर्दयी, असभ्य तथा पशुत्व के नजदीक होगा ।
इस श्रेणी को देखने पर विद्यार्थी केवल जो कुछ भी कठोरता निर्दयता और पशुत्व है, वह उसी की आशा कर सकता है। ऐसे मनुष्य मानसिक विकास तथा योग्यता बहुत ही कम रखते है। वे अधिकतर ऐसे ही कार्य करते है। जिनमें कि दिमाग की बहुत कम आवश्यकता होती है। वे स्वभाव में बहुत तेज होते हैं और वे अपनी इच्छाओं तथा क्रोध पर बहुत कम या बिल्कुल भी काबू नहीं रखते। वे अपने विचारों में बहुत ही रूखे, बहुत कम हृदयस्पर्शी ( Santiment) भावनायें, कोई विचार या भाव नहीं रखतें, और यह भी पाया जाता है कि ऐसे मनुष्यों का दिमाग बिल्कुल ही अवनति की दशा में पाया जाता है। जैसा कि मनुष्य की उच्च जातियाँ महसूस करती है, वैसा दुःख ये महसूस करते और खाने पीने, सोने के अतिरिक्त बहुत कम इच्छायें रखते हैं।
नोट- साधारण हाथों में अंगूठा बहुत ही छोटा और नीचा होता है।
आदर्शात्मक (Ideolistic) हाथ
ऐसा हाथ अनेक दशाओं में केवल मानसिकता में सबसे उन्नत होता है। किन्तु सांसारिक दृष्टि से सब से कम कामयाब होता है। ऐसे मनुष्य स्वप्न लोक तथा आदर्श लोक में ही घूमा करते है। अपने जीवन की अभ्याशिक या पार्थिक स्थिति को बहुत कम और जब अपनी आजीविका कमाने निकलते है, तो वे इतना कम पाते हैं कि अक्सर भूखा रहना पड़ता है।