________________
८१०
भद्रबाहु संहिता
(दाहिणहत्थेपुरिसाण ) दाहिना हाथ पुरुषों का व (वामयम्मि महिलाणं) वाम हाथ महिला (स्त्रियों) का देखकर उसके (लक्खणं) लक्षण को (रेहाहिंसुद्धणिज्झाइऊण ) रेखा को अच्छी तरह से देखकर वर्णन किया है ( तो लक्खणं सुबह ) ।
भावार्थ — दाहिने हाथों के लक्षण पुरुषों के व वाम हाथों के लक्षण महिलाओं के देखकर रेखाओं का वर्णन किया है। उनके लक्षण को सुनो मैं उसका अच्छी तरह से अन्य ग्रन्थों का भी आधार लेकर वर्णन करूँगा ।
वराहमिहिर की भुंगुसंहिता में ऋषी ने ऐसा कहा है कि अगर जिसके हाथ बन्दर सरीखे हो वह बहुत धनवान होता हैं और सिंह के समान हाथों वाला पापी होता है। इन हाथों के लक्षण मैं और भी आगे कहता हूँ ॥ 3 ॥
पूर्वमाय: परीक्षेत
पश्चाल्लक्षणमादिशेत् । आयुहननराणां तु लक्षणैः किं प्रयोजनम् ॥ 4 ॥
भावार्थ — सामुद्रिक शास्त्र के द्वारा शुभाशुभ फलों के विवेचन करने वाले पुरुष को पहले प्रश्नकर्ता की आयु की परीक्षा कर अन्य लक्षणों का आदेश करना चाहिये। क्योंकि जिसकी आयु ही नहीं है वह अन्य लक्षण जानकर क्या करेगा ? || 4 || वामभागे तु नारीणां दक्षिणे पुरुषस्य च। निर्दिष्टं लक्षणं चैव सामुद्र-वचनं
यथा ॥15 ॥
भावार्थ — इस शास्त्र के वचन के अनुसार, पुरुष के दाहिने और स्त्री के बांये अंग के लक्षण का निर्देश करना चाहिये ॥ 5 ॥
हाथ की बनावट के बारे में पं. बालभट्ट जी गाल्विय का ऐसा अभिप्राय हैं । कि हस्त रेखा तथा हाथ की बनावट के पढ़ने से विद्यार्थी को चरित्र तथा भाग्य के जानने में बहुत मदद मिलती है। हाथ की शक्ल बहुत धन तथा उसके कुल के विषय में बतलाती हैं । चरित्र का कारण बताने वाला चिह्न जैसे कि हाथ की बनावट से ज्ञात होता है, इस विद्या का मूल बतलाता है। कि यह अपने में भी बहुत गहरी तथा अच्छी बातें, जबकि जातियों में कर्क, उनका दूसरों के साथ मिलना, जो कि आजकल पृथ्वी पर बहुत फँस गया है, बतलाती है। उदाहरणार्थ - एक फ्राँस तथा इंग्लैण्ड देश के मनुष्य के हाथ के फर्क से उसके स्वभाव तथा चरित्र के विषय में ज्ञान प्राप्त हो जाता है।