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हस्त-रेखा ज्ञान
करलखन सामूद्रिक शास्त्रम्
मङ्गलाचरण पणमिय जिणममि अगुणं गयराय सिरोमणिं महावीरं।
वुच्छंपुरि सत्थीणं करलक्खणमिह समासेणं॥1॥ (अमिअगुणं) अमित गुण के धारक (गयराय सिरोमणि) जो रोग रहित होकर सबके शिरोमणि हो गये है ऐसे (महावीरंजिणंपणमिय) महावीर जिनेन्द्र को नमस्कार करके (समात्सेणं) अच्छी तरह से (मिह) इस (पुरिसत्थीणं करलक्खणम्) पुरुष व स्त्रीयों के हाथों के त अंगों के लक्षण का वर्णन करने वाला करलखन नामक ग्रन्थ को (कुच्छ) कहूँगा।
भावार्थ-जो अनन्त गुणों के धारक हैं जिनका राग, द्वेष नष्ट हो गया है ऐसे महावीर जिनेन्द्र को नमस्कार करके में स्त्री और पुरुषों के हाथों व अंगों के लक्षण का वर्णन करने वाला करलखन नामक ग्रन्थ को कहूँगा ।। 1 ।।
पावइ लाहा लाहं सुदृदुक्खं जीविअं च मरणं च।
रेहाहिं जीवलोए पुरिसो विजयं जयं चतहा।।2।। (जीवलोएपुरिसो) इस मनुष्य लोक में मनुष्य (रहाहि) रेखा से (जीविअंचमरणं च) जीवन अथवा मरण (तदा) तथा (जयं च विजयं) जय और विजय (पावइ) को प्राप्त करता है।
भावार्थ-इस मनुष्य लोक में मनुष्य हस्तरेखा से व शरीर के सुन्दर लक्षणों से सुख-दुःख, हानि-लाभ, जय-विजय, जीवन-मरण आदि प्राप्त करता है उत्तम महापुरुषों के शरीर में एक हजार आठ शुभ लक्षण होते हैं, उनसे नित्य सुख ही सुख भोगते है, और जो पापोदय से सहित मनुष्य होते हैं, उनके शरीर में अनेक अशुभ लक्षण होते है, उनका फल जीवन में मात्र कष्ट ही कष्ट पाना होता है॥2॥
दाहिणहत्थेपरिसाण लक्खवणं वामयम्मि महिलाणं। रेहाहिं सुद्धणिज्झाइ ऊण तो लक्खणं सुणहं॥3॥