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सामुद्रिक शास्त्र करलखन |
हस्त-रेखाओं का संक्षिप्त ज्ञान
हस्त रेखा विज्ञान अत्यधिक पुरानी विद्या हैं। जिसका उद्भव भारतवर्ष में हुआ था। बाद में इसका विकास चीन, मिश्र आदि देशों में हुआ। व्यास, पराशर (Chaglaya) गौतम, भृगु, भारद्वाज, कश्यप, अत्रि, इत्यादि महान् ऋषियों ने इस विषय का प्रचार किया ग्रीस में राजा सीजर महाराज अगस्त्य और मैगनिटस में हस्त रेखा विज्ञान का बड़े ही उत्साह से स्वागत किया आधुनिक हस्तरेखा विज्ञान हिन्दू सामुद्रिक-शास्त्र पर आधारित हैं (Cherio) (Count Louis Hoamon) ने इस विद्या का उद्भव-स्थान भारत को माना हैं, और उसने भारतवर्ष के विद्वानों से इसका ज्ञान प्राप्त किया था, पाश्चात्य विद्वानों ने इस दिशा में अनुन्धान कार्य करके इसे अत्यधिक वैज्ञानिक रूप प्रदान किया पाश्चात्य विद्वानों में उल्लेखनीय नाम इत्यादि हैं।
जिस प्रकार से एक मानव की आकृति दूसरे मानव से भिन्न है उसी प्रकार से उसकी हाथ की रेखायें भी एक-दूसरे से भिन्न होती हैं, सौ करोड़ हाथों में अंगूठो के निशान एक-दूसरे से नहीं मिलते क्या यह प्रकृति का चमत्कार नहीं हैं ? डॉ. एनीवीसेण्ट ने एक जगह लिखा है। कि विविधता उस विराट की ही अभिव्यक्ति हैं मनुष्य न केवल व्यवहार में बल्कि शरीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक विकास सभी में एक-दूसरे से भिन्न हैं, इसी प्रकार हाथों की बनावट और रेखायें भी भिन्न होती हैं। यह रेखायें हाथों के मुड़ने से नहीं बनती बल्कि रक्तनाड़ियों और स्नायु के माध्यम से मस्तिष्क कोशिकाओं द्वारा निर्मित होती हैं, सम्भव है कि यह अवचेतन मन जो ज्ञान का अथाह समुद्र है, उसके प्राकृतिक चिह्न हों जिस प्रकार चिकित्सक एक हड्डी एक दाँत एक बाल मात्र से किसी भी व्यक्ति की आयु बता सकता हैं, जीव विज्ञान का ज्ञाता मृत पशु का पूरा आकार निर्मित कर सकता है। वनस्पति