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भद्रबाहु संहिता
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चित्ताहिमंदवरिसं साइहिमिह वइवादि परिखेऊ।
बहुवरिसं च विसाहा अणुहाहेणाविबहुवरिसं॥१७१॥ (चिताहिमंदवरिसं) चित्रा में बरसे तो मन्द वृष्टि होती है (साइहिमिहवइवादिपरिखेऊ) स्वाति में बरसे तो थोड़ा पानी बरसता है (विसाहा) विशाखा में बरसे तो (बहुवरिसं) बहुत वर्षा होगी (च) और (अणुहाहेणावि बहुवरिसं) अनुराधा में बरसे तो बहुत वर्षा होगी।
भावार्थ-चित्रा नक्षत्र में पानी बरसे तो मन्द वृष्टि होगी, स्वाति नक्षत्र में बरसे तो बहुत पानी बरसेगा, विशाखा में हो तो वह भी वर्षा बहुत होती है।। १७१॥
जिट्ठिससु अण्णाद्दिट्टी मूलेणुदयंणिरंतरंदेइ।
तइहोइ वाइवरिसं उत्तरपुव्वे णसंदेहो॥१७२॥ (जिट्टिसु अण्णादिट्टी) ज्येष्ठा नक्षत्र में थोड़ी वर्षा होती है (मूलेणुदयंणिरंतर देइ) मूल नक्षत्र में अच्छी वर्षा होती है। (उत्तमुकेरिस एवं पूर्व और उतराषाढ़ा - में (तई होइवाइ णसंदेहो) हवा चलकर वर्षा होती है। इसमें कोई सन्देह नहीं है।
भावार्थ- यदि ज्येष्ठा नक्षत्र में पानी बरसे तो वर्षा थोड़ी होगी, मूल में बरसे तो अच्छी वर्षा होगी, एवं पूर्वाषाढ़ा या उत्तराषाढ़ा में हवा चलकर वर्षा होती है॥ १७२।।
सवणे कातियमासे वरिसं णासेड़ णत्थिसंदेहो।
उदये हवइथणाए वरिसइ देऊणसंदेहो ॥१७३ ॥ (सवणे वरिसं) श्रवण नक्षत्र में बरसे तो (कातियमासेणासेइ) कार्तिक महीने में वर्षा का नाश होगा (णात्थिसंदेहो) इसमें सन्देह नहीं हैं (उदये हवइइ धणाएवरिसइ) धनिष्ठा नक्षत्र में बरसे तो (देऊणसंदेहो) बहुत वर्षा होगी, इसमें सन्देह नहीं है।
भावार्थ-श्रवण नक्षत्र में पानी बरसे तो कार्तिक में वर्षा का नाश होगा, यदि धनिष्ठा में बरसे तो बहुत वर्षा होगी, इसमें सन्देह नहीं है॥१७३ ॥
सयभिसु भद्दवआऊ पुवुत्तरयाविं बहुजलद्दीति। रेवई अस्सिणी भरणी वसारत्ते सुहिं दित्ति ।। १७४॥