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निमित्त शास्त्रम्
जड़मयसिरम्मि वरसइ तत्थसुभिक्खंति होइणायस्वो । अदाएचितलवो पुणव्वसे मास वरिसंत्ति ।। १६८ ।
(जइमयसरम्मिवरसइ) यदि मेघ मृगशिर में बरसे तो (तत्थ) वहाँ पर (सुभिक्खति वहाँ पर सुभिक्ष होगा (णायव्वो) ऐसा जानना चाहिये। (अद्दाएचितलव्वोपुणव्वसे) आर्द्रा में बरसे तो खण्डवृष्टि होगी, पुनर्वसु में बरसे तो (मासवरिसंति) एक महीने तक वर्षा होती है।
भावार्थ — यदि मृगशिर नक्षत्र में पानी बरसे तो सुभिक्ष होगा ऐसा जानो, आर्द्रा में बरसे तो खण्ड वृष्टि और पुनर्वसु में बरसे तो एक महीने तक लगातार पानी बरसता है ॥ १६८ ॥
सस्साणयउच्छहोइसंपत्ति । विणासणं होई ॥ १६९ ॥
पुस्सेवाउम्मासं असलेसे बहुउदयं सस्साण
( पुस्सेवाम्मासं) यदि पुष्य को बरसे तो ( सस्साणय उच्छहोइ संपत्ति) धान्यों की बहुत उत्पत्ति होती है ( असलेषे वहुउदयं ) आश्लेषा में वर्षा हो तो ( सस्साणविणासणं होई) धान्यों का विनाश होगा ।
भावार्थ — यदि पुष्य नक्षत्र में बरसे तो धान्यों की उत्पत्ति अच्छी होगी, आश्लेषा में बरसे तो धान्य का नाश होगा ॥ १६९ ॥
मह फग्गुणीहि वरसइखेम सुभिक्खं होईणायव्वो । उत्तर फग्गुणि हत्थेखेम सुभिक्खं वियाणाहि ।। १७० ॥
( मह फग्गुणीहिवरसइ) यदि मेघ, मघा या पूर्वाफाल्गुनी में बरसे तो समझो (खेमसुभिक्खं होईणायव्वो) क्षेम कुशल और सुभिक्ष करता है ऐसा जानो, उत्तरफाल्गुनी या हस्त में बरसे तो, (सुभिक्खंवियाणाहि ) सुभिक्ष होगा ऐसा जानना चाहिये । भावार्थ — यदि मेघ मघा या पूर्वाफाल्गुनी में बरसे तो समझो क्षेम कुशल व सुभिक्ष होगा, ऐसा समझो और यदि उत्तराफागुनी और हस्त में मेघ बरसे तो समझो सुभिक्ष होगा, ऐसा जानना चाहिये ।। १७० ।।