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निमित्त शास्त्रम्:
भावार्थ-यदि दिन में इन्द्र धनुष पूर्व या दक्षिण अथवा वाम भाग में दिखे तो पानी का नाश करेगा और बहुत वायु चलेगी ऐसा समझो।। १०२।।
पच्छिम भाये पुणओ वरिसं च विमुंचए अइबहूर्य।
उत्तर उइवो अहवादीसंतिण सोहणा धण्णू॥१०३॥
यदि इन्द्र धनुष (पच्छिम भायेपुणओ वरिसं) पश्चिम भाग में दिखे तो (च विमुंचए अइबहूय) पानी अच्छा बरसेगा, (उत्तरउइवो अहवादीसंतिण) और उत्तर में दिखे तो (सोहणा धण्णू) शुभ नहीं है।
भावार्थ-यदि इन्द्र धनुष पश्चिम भाग में थोड़ा दिखे तो समझो वर्षा अच्छी होगी, और उत्तर की ओर थोड़ा झुका रहे तो शुभ नहीं है अशुभ करेगा॥ १०३ ॥
धणियंणइएवित्ता कन्या कुव्वंति मंडलं णिउ।
साहति अग्निदाहं चोर भयं च णिवेदत्ति॥१०४॥ (धणियंणइएवित्ता कन्या) यदि इन्द्र धनुष (मंडल कुव्वंति) मंडलाकार दिखे तो (णिउ) जानो कि (साहंति अग्निदाह) वहाँ पर अग्नि दाह होगा, (चोर भयं च णिवेदत्ति) और चोर भय भी होगा ऐसा निवेदन करे।
भावार्थ यदि इन्द्र धनुष मण्डलाकार दिखे तो अग्निदाह, और चोर भय होगा ऐसा जानो।। १०४॥
इंद१ वणेय पुणोजे दोसा हंति णयरमज्जम्मि।
ते हुंति परिदस्स दुवारिसदिणमंतरेणियदं॥१०५॥ (इंदुट्टवणेयपुणोजे दोसाहुति) जो इन्द्र धनुष के दोष होते हैं (णयरमज्जम्मिहुंति) जिस नगर में उसी नगर में उसका फल होता है (ते हुंतिणरिदस्सदु) उसी राज्य में दो (वारिदिणभंतरेणियद) वर्ष में उसका फल होगा।
भावार्थ-जो इन्द्र धनुष का दोष जिस नगर में वा जिस राज्य में दिखे तो समझो उसका फल उसी देश वा राज्य में होगा ॥ १०५।।
उटुंतो जइकंपड़ परिधो लभऊ बलययाण मई।
ते जाणई बलसोहं रजब्म संचरणस्सं ॥१६॥ (उर्छतो जइकंपइ परिधो) यदि इन्द्र धनुष उठता हुआ कांपे वा लम्बा होता