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भद्रबाहु संहिता |
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हैंसने पर विभ्रम होगा सारे प्रदेश में, (चलियेणकपिएणय) चलती हुई देखे वा कपायमान दिखे तो (तत्थ) वहाँ पर (संगामोणायव्यो) संग्राम होगा।
भावार्थ-यदि प्रतिमा रोते हुऐ दिखे तो राजा का मरण होगा, हंसने पर सारे प्रदेश में विभ्रम होगा, चलती हुई प्रतिमा दिखे वा कंपायमान दिखे तो वहाँ पर संग्राम होगा ऐसा जानना चाहिये।। ८१॥
पस्सिणे तह वाहीधूमेण य बहुविहाणि एयाणि।
बंभाण वियाणासं रूई मुपणासणं कुणइ॥८२।। (तह पस्सिणे) उसी प्रकार प्रतिमा से पसीना (वाही धूमेणय) धूम सहित निकले वा (बहुविहणि ए याणि) इस प्रकार बहुत उत्पात हो तो फल भी बहुत प्रकार के होते है (रूद्दे) और रुद्र की प्रतिमा से ऐसा हो तो (बंभाणवियाणास) ब्राह्मणों का विनाश होगा (मुपणासणं कुणइ) इसी प्रकार के फल को कहते है।
भावार्थ-उसी प्रकार प्रतिमा से पसीना, धूमसहित निकले तो वा ऐसे उत्पात और भी प्रकार के निकले तो फल भी बहुत प्रकार के होते हैं, यदि शिव की प्रतिमा से ऐसा होतो समझो शीघ्र ही ब्राह्मणों का विनाश होगा।। ८२।।
वणियाणच्च कुबेर खंदोपण भोइये विणासेई।
कायच्छाणं विसहो इंदो राइविणासेई ।। ८३॥ (कुबेर वणियाणच्च) कुबेर की प्रतिमा से धूम सहित पसीना निकले तो वैश्यों का नाश (खंदोपुण भोइयेविणासेई) खंदे से पसीना निकले तो भोइयों का नाश, (कायच्छाणविसहो) हाथों से पसीना निकले तो कायस्थों का नाश होगा (इंदोराइं विणासेई) यदि इन्द्र की प्रतिमा से ऐसा हो तो राजा का विनाश होगा।
भावार्थ-कुबेर की प्रतिमा से धूम सहित पसीना निकले तो वेश्यों का नाश होता है, खंदे से ऐसा हो तो भोइयों का नाश हाथों से ऐसा हो तो कायस्थों का नाश इन्द्र की प्रतिमा से ऐसा हो तो राजा का नाश होता है॥८३॥
भोगवइण कामोकिण्णोपुणसठ्ठलोपणाणयरे। अरहंत सिद्ध बुद्धा जईणणासंपकुव्वंति॥८४॥