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भद्रबाहु संहिता
उदधूलोधूलिधूसरो सूरो ।
वाहिमरणं देशविणासं चदुभिक्खं ॥ १६ ॥
अहदीसड़ सो कुणइ
(सूरो) यदि सूर्य के ( अहदीसइजइखंडो) टुकड़े-टुकड़े दिखे (उद्धूलोधूलि - धूसरो) एवं धूल, धूम आदि उठता हुए दिखे तो (सो) वह ( वाहिमरणं कुणइ ) व्याधि मरण उत्पन्न करेगा, (देशविणासं च ) देश का विनाश करेगा और (दुब्भिक्खं) दुर्भिक्ष करेगा ।
जड़खंडो जड़खंडो
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भावार्थ-यदि सूर्य के खण्ड-खण्ड दिखें और उसके अन्दर से धूल एवं धूम उठता हुआ दिखे तो व्याधि मरण उत्त्पन्न करेगा, देश का विनाश करेगा और दुर्भिक्ष करेगा ॥ १६ ॥
अह मंडलेणणुद्धं पीपथ मंजिठ्ठ सरिसकिण्हेण । सो कुणइ णवरसभया पंचमदिवसे संदेहो ॥ १७ ॥
( अहमंडलेणणुद्धं ) यदि सूर्यास्त के समय मण्डल रूद्ध हो और वह भी (पीपथमंजिठ्ठसरिसकिण्हेण ) पीला या मंजिल या काला रंग का हो तो ( पंचमदिवसे ) पाँच दिनों में ( सो कुणइणवरसभया) या नौ रसों में भय उत्पन्न करता है। (णसंदेहो ) इसमें सन्देह नहीं हैं।
भावार्थ-यदि सूर्यास्त के समय मण्डल रूद्ध हो और पीला या मंजिठ्ठ या काला रंग का हो तो समझो पाँच दिनों में नौ रसों को भय उत्पन्न होगा अर्थात् नौ रसों में विकार उत्पन्न हो जायगा, इसमें कोई सन्देह नहीं है ॥ १७ ॥
अह हत्थिसरिसमेहो सूरं पाएणयिन्तु मक्कमई । सो कुणइ राइ मरणं छडे दिवहेणसंदेहो ॥ १८ ॥ (सूरं ) सूर्य के आस-पास ( अह हत्थिसरिसमेहो) हाथी के आकार वाले मेघ (पारणयिन्तु मक्कमई) चारों तरफ दिखलाई पड़े तो (सो) वह (कुणइराइमरणं छडे दिव) छट्टे दिन राजा का मरण करता है ( णसंदेहो ) इसमें कोई सन्देह नहीं हैं।
भावार्थ-यदि सूर्य के आस-पास हाथी के समान मेघ दिखे तो समझों छठे दिन राजा का मरण होगा, इसमें कोई सन्देह नहीं है ॥ १८ ॥