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भद्रबाहु संहिता
है वातादिदोषसे उत्पन्न स्वप्न दोषज, दृष्ट, श्रुत, अनुभूत चिन्तोत्पन्न स्वभावजः पुण्यपाप के ज्ञापक दैव, इन आठ प्रकार के स्वप्नों में मन्त्रज्ञ और दैविक स्वप्न ही सत्य होते हैं शेष छः प्रकार के स्वप्न निष्फल होते हैं।
मल-मूत्रादिक की बाधा से उत्पन्न स्वप्न, रोग से उत्पन्न हुए स्वप्न, आलस्यादिक से उत्पन्न स्वप्न, दिन स्वप्न एवं जाग्रत अवस्था का स्वप्न, देखे गये पदार्थों को पुनः स्वप्न में देखना, प्रायः इनका फल निष्फल होता है।
बुद्धिमान पुरुष को अपने गुरु से शुभाशुभ स्वप्नों को कहे और अशुभ स्वप्नों को मात्र गुरु को छोड़कर और किसी से भी न कहे।
इस प्रकार इस परिशिष्ट अध्याय में स्वप्नारिष्ट, लिंगारिष्ट, शब्दारिष्ट, पदार्थारिष्ट आदि का मैंने वर्णन किया है भव्य जीव इसको पढ़कर लाभान्वित हो । विस्तार से वर्णन इस अध्याथ में ही मिलेगा ।
इति श्रीपंचम श्रुत केवली दिगम्बराचार्य भद्रबाहु स्वामी विरचित भद्रबाहु संहिताका परिशिष्टाध्याय अरिष्टों का वर्णन करने वाला हिन्दी भाषानुवाद की क्षेमोदेय टीका समाप्त |
सम्वत् २०४९ ज्येष्ठ शुक्ला ५ शुक्र वासरे पुष्य नक्षत्र सिंह लग्न में मूलसंघे सरस्वती गच्छे बलात्कारगणे कुन्दकुन्दाचार्य परंपरायां श्री सूरिश्वर आदिसागर अकंलीकरतत्शिष्य महान योगी सम्राट घोर तपस्वी अठारह भाषाविज्ञ मन्त्रान्त्रयंत्रज्ञान सम्राट् निमित्तज्ञान शिरोमणि, कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य महावीरकीर्ति तत्शिष्यं, मन्त्रतन्त्रा पंचविज्ञ, श्रमण रत्न, वात्सल्य रत्नाकर, वादिभकेशरी, सिद्धान्तमहोदधि गणधारार्थ कुन्थुसागरेण इदं अंतिमश्रुत केवली रचित अष्ठांगनिमित्त शास्त्र भद्रबाहु संहिताय हिन्दीभाषानुवाद क्षेमोदय टीका कृतवान् शुभं भूयात ।
(इति परिशिष्टाऽध्यायः समाप्तः )
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