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भद्रबाहुसंहिता
मुद्गरसबलछुरिकानाराचखड्गादिशस्त्रघातेन ।
चूर्णीकृतनिबिम्ब पश्यति दिनसप्तकं चायुः ।।57॥ जो व्यक्ति पानी छाया को मुदगर, छुरी, वझे, भानः, वाण आदि से टुकड़े किये जाते हुए देखता है उसकी आय शात दिन की होती है ।15711
निजच्छाया तथा प्रोक्ता परच्छायापि तादृशी।
विश्वोत्पते कविन्द्रो दृष्ट मात्रवेदिभिः ॥४॥ इस प्रकार निजमाया दर्शन और उसके फलाफल का वर्णन किया है। परच्छाया दर्गा या फल भी निजच्छा गा दर्शन या समान ही रामझना चाहिए। किन्तु शास्त्रों के ममता ने जो प्रधान विशेषताएँ बतलायी है उनका वर्णन किया जाता है 11550
ररूपी तरुण; पुरुषो न्यूनाधिकमानजितो नूनम् ।
प्रक्षालितसर्वागी विलिप्यते स्वेन गन्धेन ॥5॥ एक अत्यन्त सुन्दर युवा को जो न नाटा हो न लम्बा हो, स्नान कराके वन गुगन्धित गन्ध लपन से युक्त करें ।। 59।।
अभिमन्य तस्य कायं पश्चादुक्ते महीतले विमले।
छायां पश्यतु स नरो धृत्वा तं रोगिणं हृदये ।।6।। उग ३६म 'पृरुप नगरीर को पूर्वोक्त--'केही रकने रक्त प्रिय सिंहमस्तकगमामले का मागिनीदवि अस्य गगरे अवत: अवतर छायामन्यां तुम युम हो स्वाहा' मग मन्धित कर रखा भमि पर स्थित हो उग व्यक्ति में लेगी न ध्यान कम हुए छाया का दर्शन करे 1।10।।
या वका प्राङ्मुखोच्छाधार्दा वाधोमुखवतिनी ।
दृश्यतं रोगिणो यस्य स जीवति दिनद्वयम् ।।6।। भिग रोगी का ध्यान तार जाया का दर्शन किया जाय, यदि छाया टेढ़ी, अधोगुग्गी, पात्र पुग्यो दिखाई पड़े तो वह गंगी दो दिन जीवित रहता है !16 1 ।।
हसन्तो कथयेन्मार्स रुदन्ती च दिनद्वयम्।
धावन्ती विदिन छाया पादैका च चतुर्दिनम् ॥26॥ गती हुई छाया नमः महीने की आयु, गोती दुई छाया देखने से दो दिन की आप, दो नाराया दम्यने में तीन दिन की आप और एक पर की छाया देवा में चार दिन को मानी चाहिए ।। 6211