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________________ परिशिष्टाऽध्यायः 4.9 कोयला, चमड़ा या अन्य किसी प्रकार की छाया से रहित -पृष्ठ पर छाया वा दर्शन करें ।।48-501 न पश्यसि आतुरश्छायां निजां तत्रैव संस्थितः । दशदिनान्तरं याति धर्मराजस्य मन्दिरम् ॥51। जो रोगी उक्त प्रकार के भू-पृष्ठ पर स्थित हो आनो या ना न देने निश्चय से वह दश दिन में मरण को प्राप्त हो जाता है।1511 अधोमुखी निजच्छायां छायायम्मञ्च पश्यति । दिनवयञ्च तस्यायुर्भाषितं मुनिपुंगवः ।।5211 जो रोगी व्यक्ति अपनी छाया को अधोमुन्डी कप में दाणे तथा छाया को दो हिस्सों में विभक्त देखे उसकी दो दिन में मत्यु हो जाती है, सा श्रेष्ठ भनियो ने कहा है 1132 मन्त्री न पश्यति छाधामातुरस्य निमित्तिकाम् । सम्यक निरीक्ष्यमाणोऽपि दिनमेकं स जीवति ॥5॥ यदि रोगी व्यक्ति उपयुक्त मन्त्र का जापकर छाया पर दृष्टि रखते हुए भी उस न देख सके, उसका जीवन एवः दिन का समझाना चाहिए ।।53।। वृषभरिमहिषरासभमेषाश्वादिकविविधरूपाकारः । पश्येत् स्वच्छायां लघु चेत् मरणं तस्य सम्भवति ।।540 यदि कोई व्यक्ति अपनी छाया तो बैल, हाथी, महिप, गधा, ममा और बोला इत्यादि अनेक रूपों में देखता है तो उसका तत्काल जानना चाहिए ।।540 छायाबिम्ब ज्वलत्प्रान्तं समं वीक्ष्यते निजम् । नीयमानं नरैः कृष्णस्तस्य मृत्युलघु मत: 155। यदि कोई व्यक्ति अपनी छाया को अग्नि ग प्रज्वलित, धूम से आयादित और कृष्ण वर्ण के व्यक्तियों के हारा ले जाते हुए देखता है उसकी शीघ्र मृत्यु होती है ।।551 नीला पीतां तथा कृष्णां छाया रक्तां च पश्यति । विचतुःपञ्चषडानं क्रमेणैव स जीति ॥5॥ यदि कोई व्यक्ति अपनी छाया को नीली, पानी, नाली जोर जाता है वह क्रमश: तीन, चार, पांच और कह दिन रात तपी जीवित रहना ।। 5011
SR No.090073
Book TitleBhadrabahu Sanhita Part 1
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages607
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size13 MB
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