________________
परिशिष्टाऽध्यायः
वर्षयं तु हस्तका कर्ण होने कवत्सरम् । केशहीनं कषण्मासं जानुहोना दिनककम् ॥1631
एक हाथ से हीन छाया दिखलायी पडने पर दो वर्ष की आयु. एक कान से रहित छाया दिखलायी पड़ने पर एक वर्ष की आयु केल से रहित छाया दिखलायी पड़ने पर छह महीना और जानु से रहित दिखायी पड़ने पर एक दिन की आयु होती है |163
बाहुसितासमायुक्तं कटिहोना दिनद्वयम् । दिनार्थं शिरसा होना सा षण्मासमनासिका ॥164
बाहु से युक्त तथा कमर से रहित छाया दिखाई पड़े तो दो दिन से आयु होती है। सिर से रहित छाया दिखलाई पड़े तो आधे दिन की आयु एवं नासिका रहित छाय | दिखलाई पड़े तो छह महीने की आय होती है || ।।
471
हस्तपादाग्रहीना वा त्रिपक्षं सार्द्धमासकम् ।
अग्निस्फुलिंगान् मुञ्चन्ती लघुमृत्युं समादिशेत् ॥65॥
की
हाथ और पाँव से रहित छाया विश्वलाई पड़े तो तीन पक्ष या डेढ़ महीने आयु समझनी चाहिए। यदि छाया अग्नि स्फुलिंगों को उगलती हुई दिखलाई पड़े तो शीघ्र मृत्यू गमझनी चाहिए 165 ||
रक्तं मज्जाच मुञ्चन्ती पूतितेल तथा जलम् । एकद्वित्रिदिनान्येव दिना दिनपञ्चकम् 1166 ।।
रक्त चर्बी, पोप जल और मेल को उगलती हुई छाया दिखाई पड़े तो कमणः
'
एक, दो, तीन दिन और पाँच दिन की आयु समझनी चाहिए
परछाया विशेषोऽयं निर्दिष्ट: पूर्वसूरिभिः । निजच्छायाफलं चोक्तं सर्वं बोद्धव्यमत्र च ॥67॥
उक्ता निजपरच्छाया शास्त्रदृष्ट्या समासतः । इतः परं ब्रवे छायापुरुषं लोकसम्मतम् ॥168 ।।
पुत्रायों ने परछाया के सम्बन्ध में से विशेष बाते बतलायी है। अवशेष अन्य बातो को निजच्छाया के समान गमझ लेना चाहिए। राक्षेप में स्वानुगार निज-पर छाया का यह वर्णन किया गया है। इसके अनन्तर लोकसम्मत छायापुरुप का वर्णन करते है |167-6811