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भद्रबाहसंहिता
अनिष्ट कर बताया गया है । यदि पृच्छक कमर, हाथ, पैर और छाती खुजलाता हुआ प्रश्न करे तो भी अभिधातित प्रश्न होता है।
प्रश्न वाक्य के प्रारम्भ में या समस्त प्रश्न वाक्य में अधिकांश स्वर अ इ ए ओ ये चार हों तो आलिगित प्रश्न; आ ई ऐ औ ये चार हों तो अभिधूगित प्रश्न ओर उ ऊ अं अः ये चार हों तो सामान होता है। शासनीत पास होने पर कार्य सिद्धि, अभिमित होने पर धनलाभ, कार्यसिद्धि, मित्रागमन एवं यशलाभ और दग्ध प्रश्न होने पर दुःख, शोक, चिन्ता, पीड़ा एवं धनहानि होती है। जब पृच्छक दाहिने हाथ से दाहिने अंग को खुजलाते हुए प्रश्न करे तो आलिमित; दाहिने या बायें हाथ मे समस्त शरीर को ग्बु जलाते हुए प्रश्न करे तो अभिधूमित प्रश्न एवं रोते हुए नीचे की ओर दृष्टि किये हुए प्रश्न करे तो दग्ध प्रश्न होता है। प्रश्नाक्षरों के साथ-साथ उपयुवत चर्या नेष्टा का भी विचार करना अत्यावश्यक है । यदि प्रयनाक्ष र आलिगित हो और पृच्छक की चेष्टा दग्ध प्रश्न की हो ऐसी अवस्था में फल मिश्रित बाहना चाहिए । अमवाक्य या वाक्य के आद्यवर्ण का स्वर आलिगित हो और पर्या-चेष्टा अभिधूमित या बग्न प्रपन बी हो तो मिश्रित फल समझना चाहिए।
उपयुक्त बाठ नियमों द्वारा प्रश्नों का विचार करते समय उत्तरोत्तर, उत्तराधर, अधरोत्तर, अधराधर, बर्मोत्तर, बधिर, अक्षरोत्तर, स्वरोत्तर, गुणोतर और आदेशोजर इन गेदों का विचार करना चाहिए। अऔर क वर्ग उत्तरोत्तर, च वर्ग और ट वर्ग उत्त सधर, त वर्ग और य वर्ग अधरोत्तर एवं य वर्ग और श बर्ग धराधर होते हैं। प्रथम और तृतीय वर्ग वाले अक्षर वर्मोत्तर, द्वितीय और चतुर्थ वर्ग बाले अक्षर अथरोत्तर एवं पञ्चम वर्ग वाले अक्षर दोनों--- प्रथम और ततीय मिला देने से झार यः वर्गोत्तर और वर्णाधर होते हैं। क ग ङ च जभर ई ण त द ल ब ग य ल ग स वे उन्नीस वर्ण उत्तर संज्ञा, ख घ छ झ ट ढ थ ध फ भ र य प ये वर्ण अधर, संज्ञा, अ इ उ ए ओ अंगे वर्ण स्वरोत्तर समक, अ च त य उ जब ये आर वर्ण गुणलर रो और कटप श ग डन ह ये आठ वर्थ गुणाधर' संजक हैं ।
प्रश्नकर्ता के प्रथम, तृतीय और पंचम स्थान के वाश्याक्षर उत्तर एवं द्वितीय और चतुर्थ स्थान के वाश्याक्षर अधर कह सकते हैं। यदि प्रश्न में दीर्घाक्षर प्रथा, तृतीय और पंचम स्थान में हो तो लाभ करने वाले होते हैं । शेष स्थान में रहन करिब और प्लुताक्षर दर्शन करने वाले होते हैं। साधक इन प्रश्नाक्षरों पर राजीचन, मरणा, लाभ, लाभ, जय, पराजय आदि को अवगत करता है।
अग्नशास्त्र में प्रात दो प्रकार से बताये जाते है—मानसिक और धाचिक । वाचिक प्रश्न में प्रश्नकर्ता जिस बात को पूछना चाहता है, उसे ज्योतिषी के सामने प्रकट कर उसका फल ज्ञात करता है । परन्तु