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________________ भद्रबाहुसंहिता धन-धान्य के विनाश के साथ अनेक प्रकार का उपद्रव है। फल-फूलो में विकार का दिखलाई पड़ना, प्रकृति विरुद्ध फल-फूलों का दृष्टिगोचर होना ही उस स्थान की शान्ति को नष्ट करने वाला तथा आपस में संघर्ष उत्पन्न करने वाला है। शीत और ग्रीप्भ में परिवर्तन हो जाने से अर्थात् शीत ऋतु में गर्मी और ग्रीष्म ऋतु में मत पड़ने से अथवा सभी ऋतुओं में परस्पर परिवर्तन हो जाने से दैवभय, राजभय, रोगभय और नाना प्रकार के कष्ट होते हैं। यदि नदियाँ नगर के निकटवर्ती स्थान को छोड़कर दूर हटकर बहने लगें तो उन नगरों की आबादी घट जाती है, वहीं अनेक प्रकार के रोग फैले हैं। यदि नदियों का जल विकृत हो जाय, वह रुधिर, तेल, घी, शहद आदि की गन्ध और आकृति के समान बहुता हुआ दिखलाई पड़े तो भय, अशान्ति और धनअय होता है। कुओं से धूम 'निकलता हुआ दिखलाई पड़े, कुआँ का जल स्वयं ही खोलने लगे, रोने और गाने का शब्द जब से विकले तो महावारी फैलती है। जन का रूप न गन्ध और स्पर्श में परिवर्तन हो जाय तो भी महानारी की सूचना समझना 256 स्त्रियों का प्रसव विकार होना, उनके एक साथ तीन-चार बच्चों का पैदा होतो, उत्पन्न हुए बच्चों की आकृति पशुओं और पक्षियों के समान हो तो जिस कुल में यह घटना घटित होती है, उस कुल का विनाश उस गाँव या नगर में महामारी, अवर्षण और अशान्ति छूती है। इस प्रकार के उत्पात का फल छह महीने से लेकर एक वर्ष तक प्राप्त होता है। घोड़ी, ऊँटनी, मेस, गाय और हथिनी एक साथ दो बच्चे पैदा करें तो उनकी मृत्यु हो जाती है तथा उस नगर में मारकाट होती है । एक जाति का पशु दूसरे जाति के पशु के साथ मैथुन करे तो अमंगल होता है। दो बैल परस्पर में स्तनपान करें तथा कुत्ता गाय के बछड़े का स्तनपान करे तो महान् अमंगल होता है। पशुओं के विपरीत आचरण से भी अनिष्ट की आशंका समझनी चाहिए। यदि दो स्त्री जाति के प्राणी आपस में मंथुन करें तो · रथ, मोटर, बहली आदि की सवारी बिना चलाये चलने लगे और बिना किसी खराबी के चलाने पर भी न बने तथा सवारियाँ चलाने पर भूमि में गड़ जायँ तो अशुभ होता है। बिना बजाये तुम्ही का शब्द होने लगे और बजाने पर बिना किसी प्रकार की खराबी के तुम्ही शब्द न करे तो उससे परत का आगमन होता है अथवा शासक का परिवर्तन होता है। नेताओं में मतमंद होता है और वे आपस में झगड़ते हैं। यदि वन स्वयं ही गांय-सांय की विकृत ध्वनि करता हुआ चने तथा पवन से घोर दुर्गन्ध आती हो तो भय होता है, प्रजा का बिना होता है तथा दुर्भिक्ष भी होता है 1 घर के पालतू पक्षिण बन जायें और बनैले पक्षी निर्भय होकर पुर में प्रवेश करें, दिन में चरने वाले रात्रि में अथवा रात्रि के चरने वाले दिन में प्रवेश करें तथा दोनों सख्याओं में मृग और पक्षी मण्डल बाँधकर एकत्र
SR No.090073
Book TitleBhadrabahu Sanhita Part 1
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages607
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size13 MB
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