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चतुर्दशोऽध्यायः
257 हों तो भय, मरण, महामारी एवं धान्य ना विनाश होता है। सूर्य की ओर मुंह कर गीदड़ रोयें, कबूतर या उल्न दिन में राजभवन में प्रवेश करे, प्रदोष के समय मुर्गा शब्द करे, हेमन्त आदि ऋतुओं में कोयल बोले, आकाश में बाज आदि पक्षियों का प्रतिलोम मण्डल विचरण करे तो भयदायी होता है। घर, चैत्यालय और द्वार गर अकारण ही पक्षियों का झुण्ड गिरे तो उग घर या चैत्यालय का बिनाश होता है। यदि कुत्ता हड्डी लेकर घर में प्रवेश करे तो रोग उत्पन्न होने की सूचना देता है । पशुओं की आवाज मनुष्यों के समान भालूम पड़ती हो तथा वे पशु मनुष्यों के समान आचरण भी करें तो उस स्थान पर पोर संकट उपस्थित होता है । रात में पश्चिम दिशा की ओर कुना शब्द करत हों और उनके उन त में शृगाल शब्द करें अर्थात् 'पहले कुत्ता बोलें, पश्चात् मा अनम:-
S I शुमार हर प्रकार शब्द करें तो उस नमर का विनाश छ: महीने के बाद होने लगता है और तीन वर्षों तक उस नगर पर आपत्ति आती रहती है । भवाम्। हए बिना पृथ्वी फट जाय, बिना अग्नि ने धुआँ दिनलाई पड़े और बालक गण मार-पीट का बल देलते हुए कहें-मार डालो, पोटो, इराका विनाश कर दो तो उस प्रदेश में भूव.म्प होने की सूचना समझनी चाहिए । बिधा बनाये किमी गावित या घर की दीवारों पर गेरू के लाल चिह्न या कोयन से काल चित्र बन जायें तो उस घर का पांच महीन में विनाश हो जाता है । जिस घर में अधिक म.श्यां जाल। बनाती हैं उस घर में कलह होती है 1 गांव या नगर के बाहर दिन में शृगाल और उल्लू शब्द करें तो उस गाँव के विनाश की सूचना समलनी चाहिए । वर्षा कान में पृथ्वी का काँपना, भूकम्प होना, बादलों की आकृति का अदल जाना, पर्वत और घरों वा चलायमान होना, भयंकर शब्दों का चारों दिशाओं में सुनाई पउना, गुम हुए वृक्षों में अंकुर का निकल आना, इन्द्रधनुष का काले रूप में दिखलाई पड़ना एवं श्यामवर्ण की विद्युत का गिरना भय, मत्यु और अनावृष्टि का गुचा है। जब वर्षा-ऋतु में अधिक वर्षा होने पर भी पृथ्वी मूखी दिखलाई पड़े, तो उस वर्ष दुर्भिक्ष की स्थिति समझनी चाहिए। ग्रीष्मऋतु में आकाश में बादल दिखलाई पड़ें, बिजली कड़या और चारों और वर्षा ऋतु की बहार दिनलाई पड़े तो भान तथा महामारी होती है । वर्षी ऋतु में तेज हवा चले और त्रिकोण या चौकोर ओले गिरें तो उग वर्ष अवाल की आशंका समझनी नाहिए । यदि गाम, बारी, घोडी, हथिनी और स्त्री के विपरीत गर्भ की स्थिति हो तथा विपरीत सन्तान प्रसव पर तो राजा और प्रजा दोनों के लिए अत्यन्त काट होता है। ऋतुओं में प्रस्थानावि: विकार दिखलाई पड़े तो जगत् में पीड़ा, भय, संघर्ष आदि होते हैं। यदि आकाण में लि, अग्नि और धुआँ की अधिकता दिखलाई पड़े तो दुभिक्ष, चोरों का उपद्रव एवं जनता में अशान्ति होती है।
(रोग-सूचक उत्मात--चन्द्रमा कृष्ण वर्ण का दिखलाई दे तथा तागएं