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भद्रबाहुसंहिता
अनुलोमो विजयं ब्रूते प्रतिलोमः पराजयम् ।
उदयास्तमने शुक्रो बुधश्च कुरुते तथा ।।1691 शुक्र और बुध अनुलोम उदय, अस्त को प्राप्त होने पर विजय करते हैं और प्रतिलोम उदय, अस्त को प्राप्त होने पर पराजय ।।16911
मार्गमेकं समाश्रित्य सभिक्षक्षेमदस्तथा ।
उशना दिशतितरां सानुलोमो न संशयः ।।1700 शुक्र सीधी दिशा में एक-सा ही गमन करता है तो निस्सन्देह मुभिक्ष और कल्याण देता है ।।17011
यस्य देशस्य नक्षत्रं शुक्रो हत्याहिकारगः ।
तस्मात् भयं परं विन्द्याच्चतुर्मासं न चापरम् ।।1710 वित होकर शुक्र जिस देश के नक्षत्र का घात करता है, उस देश को, उस घातित होने वाले दिन से चार महीने तक भय होता है, अन्य कोई दुर्घटना नहीं घटती है ।।7।।
शुक्रोदये ग्रहो याति प्रवासं यदि कश्चन ।
क्षेमं सभिक्षभाचष्टे: सर्ववर्षसमस्तदा ।11721 शुक्र के उदय होने पर यदि कोई ग्रह अस्त हो जाय तो मुभिक्ष, कल्याण और गमयानुकूल यचाट वर्षा होती है राधा बर्ष भर एक-मा आनन्द रहता है ।। 1720
बलक्षोभो भवेच्छ्यामे प्रत्यः कपिलकृष्णयोः ।
नोले गवां च मरणं रूक्षे वृष्टिक्षय: क्षुधा ।।।73॥ यदि शुक्र ग्याभवर्ण का हो तो बल अब्ध होता है । पिंगन और कृष्ण वर्ण का शुक्र हो तो मृत्यु, नीलवर्ण ना होने पर मायों का भरण और रूक्ष होग पर बर्षा का माश तथा शुधा को बना का मुच होता है ।।1 731
वाताक्षिरोगो मामिष्ठं पोते शुक्र ज्वरो भवेत् ।
कृष्णे विचित्रे वर्णे च क्षयं लोकस्य निर्दिशेत् ।।17411 शुक्र के मंजिष्ट वर्ण होन पर बात और अक्षिरोग, पीतवर्ण होने पर ज्वर और विचित्र का वर्ण होने पर लोग का भय होता है ।। 1 74।।
I. तया जिसमाया: प.। 2. मारमान १० । 3. गहना 3. तु • I
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