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पंचदशोऽध्यायः
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गजवीथि में विचरण करने वाला बाम शुक्र बीस, तीस और चालीस खारी प्रमाण अन्न का भाव करता है ।।1621
ऐरावणपथे त्रिशच्चत्वारिंशदथापि वा।
पंचाशीतिका ज्ञेया खारी तुल्या तु भार्गवः ।।16311 ऐरावणवीथि में विचरण करने वाला शुक्र तीस, चालीस और पचासी खारी । प्रमाण अन्न का भाव करता है ।। 163॥
विशका त्रिशका खारी चत्वारिंशतिकाऽपि वा।
व्योमगो वोथिमागम्य करत्यण भागवः ॥1॥ वीस, तीम और चालीस स्वारी प्रमाण अन्न का भाव व्योमबीथि में ममा करने वाला शक्र करता है ।।16411
चत्वारिंशत् पंचाशद् वा पष्टि' वाऽथ समादिशेत् ।
जरदगवपथं प्राप्ते भार्गवे खारिसंज्ञया ।।165॥ जरद्गव वीथि को प्राप्त होने वाला शुक्र चालीग, पत्राम और साठ खारी प्रमाण अन्न का भाव करता है ।। 1 6511
सप्तति चाथ वाऽशोति नति वा तथा दिशेत् ।
अजवीथीगते शुक्रे भद्रबाहुवन्नो यथा ॥166॥ अजवोधि को प्राप्त होने वाला शुक्र सनर, अम्मी अथवा नन्य खारी प्रमाण अन्न का भाव करता है, ऐमा भद्रबाहु बरामी का बचन है !!! 66.6।।
विशत्यशीतिका खारि तिकामप्ययथा दिशेत् ।
मगवीयोमुपागम्य विवर्णो भार्गवो यदा।।1671 जब शक्र विवर्ण होकर मृगवीथि को प्राप्त करता है तो बीम, अस्सी अथवा सो खारी प्रमाण अन्न का भाव होता है। 16711
विच्छिन्नविषमणालं न च पुष्पं फलं यदा।
वैश्वानरपर्थ प्राप्तो यदा वामस्तु भार्गव: ।।16811 जब वाममश्च गुरु वैश्वानर वीथि में गमन करता है तब कमन्न का डण्ठल, विसपत्र, पुल और फल उहाल नहीं होते हैं ।। 1.६।।
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: मार्ग, विणता वा
1. सामगो पर । ?. काग न गागं च पु. । 3 दा भया ।