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________________ पंचदशोऽध्यायः नमस्तृतीयभव आहे त्वरित का नक्षत्राणि च चत्वारि 'प्रवासमारुहश्चरेत् ॥175 जब शुक्र शीघ्र ही आकाश के तृतीय भाग का आरोहण करता है तब चार नक्षत्रों में प्रवाम अस्त होता है ।। 175 ।। एकोनविंशदृक्षाणि मासानष्टौ च भार्गवः । चत्वारि पृष्ठतश्चारं प्रवासं कुरुते ततः 11176 जब शुक्र आठ महीनों में उन्नीस नक्षत्रों का भोग करता है, उस समय पीछे के चार नक्षत्रों में प्रयास करता है ||17611 द्वादशकोनविंशद्वादशाहं सेव भार्गवः । एकैकस्मिश्च नक्षत्रे चरमाणोऽवतिष्ठति ॥177 शुक्र एक नक्षत्र पर घारह दिन, दस दिन और उन्नोग दिन तक विचरण करता है ।। 177।। वक्रं याते द्वादशाहं समक्षेत्रे दशाह्निकम् । शेषेषु पृष्ठतो विन्द्यात् एकविंशमहोनिशम् ॥11783 वक्र मार्ग में भी होने पर शुक्र को बारह दिन और राम क्षेत्र में दस दिन एक नक्षत्र के भोग में लगते हैं। पीछे की ओर गमन करने में उन्नीस दिन एक नक्षत्र के भोग में व्यतीत होने है 17SH . 291 पूर्वतः समचारेण पंच पक्षेण भार्गवः । 'दा करोति कौशल्यं भवावचो यथा ॥1179।। पूर्व में गमन करता हुआ शुरु गाँव पक्ष अर्थात् 75 दिनों में कोशल करता है, ऐसा भद्रबाहु स्वामी का वचन है ।। [79।। तत: पंचदशक्षण सञ्चरत्ना पुनः । एभिर्मासैस्ततो जयः प्रवास पूर्वतः परम् ॥18॥ इसके पश्चात् पन्द्रह नक्षत्र चलता है और हटता है। इस प्रकार छः महीनों में पुनः प्रधान को प्राप्त हो जाता 11800 द्वाशीत चतुराशीति पडशीति च भार्गवः । भक्तं समेषु भागेषु प्रवासं कुरुते समम् ।।sin 1. वासस्याण. पु. 2. ČENÚ, E15 qzmegmes H-16. 99: 401 3० । 4. पनाह
SR No.090073
Book TitleBhadrabahu Sanhita Part 1
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages607
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size13 MB
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