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भद्र बाहुसंहिता
निचयाश्च विनश्यन्ति खारी द्वाशिका भवेत् ।
दानशीला नरा हष्टा नागवीथीति संज्ञिता 1700 नागवीथि में शुक्र के गमन करने से समुदायों की हानि होती है तथा द्वादन खारी प्रमाण धान्य उत्पन्न होता है और मनुष्य दानशील होते हैं 117011
एवमेव यदा शुक्रो बजत्युत्तरतस्तदा।
स्थले धान्यानि जायन्ते शोभन्ते जलजानि वा 11711 जब शुक्र उपर्युक्त नक्षत्रों में उत्तर की ओर से नमन करता है तो स्थल में भी फराल उत्पन्न होती है और जलज जीव गोभिन होने हैं 117 11
सर्वोत्तरा नागवीथी सर्वदक्षिणतो ग्निजा।
गोवीथी मध्यमा ज्ञेया मार्गाश्चैवं त्रयः स्मृताः ।।72॥ नागवीथि गबगे उत्तर, वैश्वानर वीथि दक्षिण और गोबीथि मध्यमा होती है, इस प्रकार तीन प्रकार के मार्ग बतलाये गये ।।72।।
उत्तरेणोत्तरं विद्यान्मध्यमे मध्यम फलम् ।
दक्षिणे तु जघन्यं स्याद् सद्रबाहुवचो यथा।173।। उत्तरवीथि में गमन करने पर उत्तम कान, मध्यवीथि में गमन पारने पर मध्यम फल और दक्षिण में गमन करने पर जघन्य फल होता है, गेगा भद्रबाहु स्वामी का वचन है॥73।।
यत्रोदितश्च विचरेन्नक्षत्र भार्गवस्तथा।
नृपं पुरं धनं मुख्यं पशुं हन्याद् विलम्बकः ।।7411 निम्न प्रकार प्रतिपादित रविवारादि कर बागें में उक्त नक्षत्रों में जब शश गमन करता है तो राजा, नगर, धान्य, धन और मुम्ब नजओं का अविलम्ब नाश होता है अर्थात् श्रेष्ट वारों में उतर फल और कर धारा में गमन करने पर निकृष्ट फल प्राप्न होता है 112411
आदित्ये विचरेद् रोग मार्गेऽतुल्यामय भयम् । गर्भोपघातं कुरुते ज्वलनेनाविलम्वितम् 175॥ ईतिव्याधिभयं चौरान कुरुतेऽन्त:प्रकोपनम् । प्रविशन् भार्गव: सूर्ये जिह्म नाथ विलम्विना 1176॥
1. "टा ।2. पाव । 3. 1िधि-इदियह कि हर लिखित प्रनि में अधिक मिलती है।