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पंचदशोऽध्यायः
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जब उपर्युक्त नक्षत्रों में शुक्र उत्तर की ओर से गमन करता है तो मध्यम वर्ष होता है तथा महामारी और व्याधियों का अभाव होता है ॥63॥
निष्पत्तिः सर्वधान्यानां भयं चात्र न भूच्छति।
खारीचतुष्का विज्ञेया वृषवीथीति संजिता ॥640 जब वृण्वीथि में शुक्र गमन करता है तो सभी प्रकार के धान्यों की उत्पत्ति होती है, भय और आतंक का अभाव रहता है तथा चार खारी प्रमाण धान्य उत्पन्न होता है ।।6511
अभिजिच्छवणं चापि निष्ठावारुणे तथा। रेवती भरणी चैव तथा भाद्रपदाऽश्विनी 165।। निचयास्तदा विपद्यन्ते खारी विन्द्याच्च पञ्चिका।
ऐरावणपथो ज्ञेयोऽश्रेष्ठ एव प्रकीर्तितः ।।66॥ अभिजित्, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, रेवती, भरणी, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और अश्विनी इन नक्षत्रों में शक्र का गमन करना ऐरावणपथ गाना जाता है। इस मार्ग में गमन करने से समुदायों को विपत्ति होती है और पांच खारी प्रमाण उत्पन्न होता है ।।65-6611
एषां यदा दक्षिणतो भार्गव: प्रतिपद्यते ।
बहूदकं तदा विन्द्यात् महाधान्यानि वापयेत् ।।67।। उपर्युक्त नक्षत्रों में यदि शुक्र दक्षिण मार्ग से गमन करे तो अत्यधिक वर्षा होती है तथा स्थल में बीज बोने पर भी धाव्य की उत्पत्ति होती है 1167।।
जलजानि तु शोभन्ते ये च जीवन्ति बारिणा।
खारी तदाष्टिका ज्ञेया गजवीथीति संज्ञिता ॥681 जलचर जन्तु शोभित और आनन्दित होते हैं तथा इसमें बाट खारी प्रमाण धान्य और इराकी संज्ञा गजवीथि है ।168।।
एतेषामेव तु मध्येन यदा याति तु भार्गवः ।
स्थलेष्वप्तबोजानि जायन्ते निरुपद्रवम् ।।6।। जब शुक्र उपर्युक्त नक्षत्रों के मध्य में गमन करता है तो रथल में बोये गये वीज भी निर्विघ्न होते हैं ।।6911
1. एतेषां मु० । 2. महाधान्य स्थले योत मु। 3. स्थनेपानि बी नागि जायन्ते विपद्बम् मु०।