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जव शुक्र उत्तर की ओर जाता है तो सभी वस्तुओं को विषम समझना चाहिए तथा निम्म स्थान में बीज बोना चाहिए 1156।।
कोद्रयाणां च बीजानां खारी बोशिका वदेत् ।
अजवीथीति विज्ञेया पनरेषा न संशयः ॥57॥ . यदि शुक्र अजवीथि में गमन करे जो निस्सन्देह कोद्रव बीज सोलह सारी प्रमाण उत्पन्न होते हैं ।।571
कृत्तिका रोहिणी चार्दा मघा मैत्रं पुनर्वसुः। स्वातिस्तथा विशाखास फाल्गुन्योरुभयोस्तथा 1580 दक्षिणेन यदा शुक्रो बजत्येतर्यदा समम् । मध्यम वर्षमाख्याति समे बीजानि वापयेत् ।।5।। निष्पद्यन्ते च शस्यानि मध्यमेनापि वारिणा।
जरगवपथश्चैव वारों द्वात्रिशिकां भवेत् ॥6॥ कृत्तिका, रोहिणी, आद्री, मघा, अनुराधा, गुनर्वस, स्वाभि, विशाखा, पूर्वाफाल्गुनी और उत्तराफाल्गुनी इस नक्षत्रों क साथ जब शुक्र दक्षिण की ओर गमन नारता है. तो मध्यम वर्प होता है तथा समभूमि में बीज बोने से अच्छी फसल होती है । कम वर्षा होने पर भी फसल उत्ता होती है तथा जगद्गवीथि से शुक्र का गमन होने पर द्वादश खारी प्रमाण धान्य की उत्पत्ति होती है ।। 5 3-60।।
एतेषामेव मध्येन यदा गच्छति भार्गवः ।
तवापि मध्यमं वर्ष मीपत् पूर्वा विशिष्यते ।।6।।। उपर्युनत नक्षत्रों के मध्य में जब शुक्र गमन करे तो मध्यम वर्ष होता है तथा पूर्वोक्त वर्ष की अपेक्षा कुछ उता रहता है 116 111
सर्व निष्पद्यते धान्यं न व्याधि पि चेतयः ।
खारी तदाऽष्टिका जैया गोदीथीति व संहिता ॥2॥ सभी प्रकार के धान्य उत्पन्न होन है, किसी भी प्रकार की महामारी और व्याधियां नहीं होती । इस गोवीथि में शुक्रन गभग ने आट खारी प्रमाण धान्य उत्पन्न होता है ।।621
एतेषामेव यदा शुको अजत्युत्तरतस्तदा । मध्यमं सर्वमाचष्टे तयो नापि व्याधयः ।।63॥
1. निष्पधने तथा शाम्यं मन्दनायथ वारिपाम। 2. घोर्थी मागगना।
हादशियः। म । 3. मा ।