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पत्रदशोऽध्याय
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गमन करने में जमन्य, उत्तम और २ माल होता है । पतला पक्ष में निस्सन्देह शुभाशुभ फल का प्रतिपादन करना चाहिए 1500
तिष्यो ज्येष्ठा तथाऽऽश्लेषा 'हरिणो मलमेव च।
हस्तं चित्रा मघाऽधाढ़े शुको दक्षिणतो व्रजेत् ॥5॥ पुष्य, आपा, ज्येष्ठा, मृगशिग, मूल, हस्त, चित्रा, मघा, पूर्वापाढा इन नक्षत्रों में शुक्र दक्षिण में गमन करता है 115 1 ।।
शुष्यन्ते तोयधान्यानि राजानः क्षत्रियास्तथा ।
उग्रभोगाश्च पीड्यन्ते धननाशो "विनायकः ।।52॥ दक्षिण मार्ग मा जब शक्र गमन करता है तो जल और अनाज के पोधे मूख जाते हैं तथा राजा, क्षत्रिय और महाजन पीडित होने हैं एवं धन का नाग होता है 1152।।
वैश्वानरपथो नामा यदा हेमन्तग्रोष्पयोः ।
मारुताऽग्निभयं "कुर्यात् 'वारी च चतुःषष्टिकाम् ॥5॥ जब हेमन्त और ग्रीम जानु में वैश्वानर वीथि ग शुक्र गमन वारता है तो वायु और अग्नि भय, मृत्यु आदि फल घटित होता है तथा एक आइक प्रमाण जल बरसाता है 153।।
एतेषामेव मध्येन यदा गच्छति भार्गवः ।।
विषम वर्षमाख्याति "स्थले बीजानि वापयेत् ।।54।। जब शुक्र इनके मध्य में गमन करता है तो सभी बाने विषम हो जाती हैं अर्थात् वर्ग निष्ट होता है। उस वर्ष बीज स्थान में बाना चाहिः ॥540
खारी द्वानिशिका जया मगवीथीति संजिता ।
व्याधयः त्रिषु विज्ञेयास्तथा चरति भार्गवे 1155।। जब शक मुगवीथि में विचरण करता है तब घान्य 32 वारी प्रमाण पन्न होते हैं और दैहिक, दैविक तथा भौतिक तीन प्रकार की व्याधियाँ अवगत करती चाहिए।551
एतेषां तु यदा शुक्रो बजत्युत्तरस्तथा। विषम वर्षमास्याति निम्ने बीजानि वापयेत् ।।56॥
___1. मध्य प..। 2 विनाशवः ग3. गुगः म 1 4. स्व। मु0 1 5. सर्व मु. । 6. बीजानि तु स्थान वपन म.। 7. गाव ग । ४. य:! ग. | 9. निम्ने वरत्तदा