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चतुर्दशोऽध्यायः
___जब पुटा में पृ८१ निबद्ध हो अर्थात् पुष्प में पुष्प की-सी उत्पनि हो अथवा फल में फल निबद्ध हो अर्थात फल में फन की उत्पत्ति हुई हो तो रात्र वितण्डावाद का प्रचार एवं जनपद का महान् विनाश होता है ।147||
चतुःपदानां सर्वेषां मनुजानां यदाम्बरे ।
अ यते व्याहृतं घोर तदा मुख्यो विपद्यते ॥480 जब श्राकाश में समस्त पणुओं और मनुष्यों का व्यवहार किया गया घार शब्द सुनाई पड़े तो मुखिया की मृत्यु होती है अथवा मुखिया विपनि को प्राप्त होता है ।। 481
निर्यात कम्पने भूमी 'शुष्कवक्षप्ररोहणे ।
देशवोहा मित्रानोमान्म यातात न जोवति ॥19॥ भूमि को अकारण नितिन और कम्पित होने तथा मधे बक्ष को पुन: हरे ही जाने से देश को पीड़ा समझनी चाहिए तथा वहाँ के मुखिया की मृत्यु होती है।।4911
यदा भूधरशृंगाणि निपतन्ति महीतले ।
तदा राष्ट्रभयं विन्द्यात् भद्रबाहुवचो यथा ॥501 जब अकारण ही पर्वतों भी चोटियां पथ्वीतल पर आकर गिर जायं, तब राष्ट्र भय समझना चाहिए, सा भद्रबाहु म्बानी का बचा है 11511!!
वल्मीकरयाशु जनने मनुजम्य निवेशने ।
अरण्यं विशतश्चैव तत्र विद्यान्महद भयम् ॥5॥ मनुष्यों नः निवास स्थान में चीटियां जल्दी ही अपना विल बनायें और नगर्ग से निकलकर जंगल में प्रथा करें तो राष्ट्र के लिए महान भय मानना चाहिए ।1511
महापिपीलिकावन्दं सन्द्रकाभत्यविप्लुतम् ।
तत्र तत्र च सर्व तद्राष्ट्रभङ्गस्य चादिशेत् ।।5211 जहाँ-जहाँ अत्यधिक चीटियाँ एयनित होकर झुण्ड-क-युगड बाकिर भाग रही हो, वहाँ-वहाँ सर्वत्र गट भंग का निवेश समझना चाहिए ।। 521:
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1. शुन- ? शिवगं गमि TET गया 11 मग विधान पहा ।