________________
230
भद्रबाहुसंहिता
घटना के छठे महीने में संग्राम होता है और पृथ्वी जल से प्लावित हो जाती । है॥4 ॥
चिरस्थायोनि तोयानि 'पूर्व यान्ति पय:क्षयम् ।
गच्छन्ति वा प्रतिस्रोत: परचकागमस्तदा ॥42॥ चिरस्थायी नदियों का जल जब पूर्ण क्षय हो जाय—सूख जाय अथवा विपरीत धारा प्रवाहित होने लगे तो पर शासन का आगमन होता है 11421
वर्धन्ते चापि शीयन्ते चलन्ति वा तदाश्रयात् ।
सशोणितानि दृश्यन्ते यत्र तत्र महद्भयम् ।।4।। जहाँ नदियाँ बढ़ती हों, विशीर्ण होती हो अथवा चलती हो और नत युक्त दिखलाई पडती हो, वहाँ महान भग मानना चाहिए ।।431
शस्त्रकोषात् प्रधावन्ते नदन्ति विचम्ति बा।
यदा रुदन्ति दोप्यन्ते संग्रामस्तेषु निदिशेत् ।।4।। जहाँ अस्त्र अपने कोश में बाहर निकलते हो, शब्द वारने हों, विचरण करते हों, रोते हो और दीप्त---चमकत हो, वहाँ संग्राम की सूचना समझनी चाहिए ।।441
यानानि वृक्षवेश्मानि धूभायन्ति ज्वलन्ति वा ।
अकालज फलं पुष्पं तत्र मुख्यो विनश्यति ॥45॥ जहाँ सबारी, वृक्षा और घर धूमाय माग–धुआँ गुका या जन्नत हुए दिखलाई पढ़ें अथवा वृक्षा में अगमय में फल, 'प्प उत्पन्न हो, मुख्य- प्रधान का नाश होता है 114511
भवने यदि श्रयन्ते गीतवादितनिस्वनाः ।
यस्य तद्भवनं तस्य शारीरं जायते भयम् ॥461 है जिनके घर में बिना किमी व्यक्ति के द्वारा गाये-बजाये जाने पर भी गीत, बादित्र का शब्द सना पड़ता हो, उगवः शारीरिक 'भय होता है 14511
'पुष्प पुष्पे निबध्येत फलेन च यदा फलम् । वितथं च तदा विधात् महजनपदक्षयम् ।।471
-
-
. [ मान मन । का। पिता विन्द्यात्तगा
] न। १० । 2. [ A. जनगम । ।