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चतुर्दशोऽध्यायः
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जैसे कोई वृद्ध पुरुष किसी निमित्त के मिलते ही मरण को प्राप्त हो जाता है, उसी प्रकार पुराना वृक्ष भी रिपी निमित को प्राप्त होते ही विनाश को प्राप्त हो जाता है ।। 3511
इतरेतरयोगास्तु धादिरणनीतिः ।
वृद्धाबलोनमूलाश्च चलच्छैयश्चि साधयेत् !136॥ वृद्ध पुरुष और पुराने वृक्ष का परम्र में इतरतर--अन्योन्याश्रय सम्बन्ध है। अतः पुराने वृक्ष के उत्पाता में वृद्ध का फल तथा नवीन युवा वृक्षों स युवकः और शिशुओंग उत्पात निमिलक फल मात करना चाहिए तथा उल्लापात आदि के द्वारा भी निमितों का परि जान करना चाहिए ।।3 6!!
हसने रोदने नत्ये देवतानां प्रसपणे ।
महद्भयं विजानीयात् षण्मासाद्विगुणात्परम् ।। 37॥ देवताओं के हैंसने, रोने, नृत्य करने और चलन से छह महीन । तर एक वर्ष तक जनपद के लिए महान भय अवगता मरना राहिए ।।37112
चिलाश्चर्यसलिगानि निभोलन्ति वदन्ति वा ।
ज्वलन्ति च विगन्धीनि भयं राजवधोद्भवम् ॥38॥ विचित्र, आश्न कायं चिन गुप्त हो या प्रकट हो और हिगुट युक्ष सहसा जलने लगे तो जनपद य नौ र राजा का मरण होता है ।। 38।।
"तोयावहानि सहसा रुदन्ति च हसन्ति च ।
मारिवच्च वासन्ति तत्र विश्राद् महद्भयम् ॥3911
तोयावहानि नदियों सहमा गेनी और हंगी हुई दि पर्दै श्रा . मार्जार विती गमान गान आती हो तो महान भय माना चाह ।।39।।
वादित्रशब्दाः श्रयन्ते बेशं यस्मिन्न मानुषः ।
स देशो राजदण्डेन पोड्यते नाव संशयः ॥4॥ जिस देश में मनुग्य बिना किसी के बजाय भी बाज - बाबा सुगत हैं, यह देशश राजदण्ड में पीड़ित होता है, इसमें गदह नहीं है ।।400
तोयाबहानि सर्वागि वहन्ति धिरं यदा ।
पाठे माले समुद्भुते सामानः शोणिसाकुल: ।।।।।। जिस देश में दिन में 2 -सी घाग प्रत्याहित होती, दश मग
1. मम,म: गुणा !! | 2. imal2l1-14 . 1 3 11यमि
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