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भद्रबाहुसंहिता
प्रथमे मण्डले शुको यदास्तं यात्युदेति च ।
मध्यमा सस्यनिष्पत्ति मध्यम वषमुच्यते ॥14॥ यदि प्रथम माइन में शुक्र अस्त हो या उदित हो—भरणी, ऋतिका, रोहिणी और मृगशिरा नक्षत्र में शुक्र अस्त हो या उदित हो तो उस वर्ष मध्यम वर्षा होती है और फसल भी मध्यम ही होती है ।।। 41
भोजान् कलिंगानगांश्च काश्मीरान दम्युमालवान् ।
यवनान सौरसेनांश्च गोद्विजान् शबरान् दधेत् ॥15॥ भोज, कलिम, उंग, काश्मीर, पवन, मालव, सौरसन, गो, द्विज और अबरों का उअत प्रकार के शुक्र के अस्त और उदय से वध होता है ।।। 511
पूर्वत: "शोरका लगान् मागयो जयते नपः ।
सुभिक्षं क्षेममारोग्यं मध्यदेशेषु 'जायते ।।16।। पूर्व में भीर और वलिंग को मागध नग जीतता है तथा मध्य देश में शुवृष्टि, क्षम और आरोग्य रहता है ।। 1611
यदा चान्ये तिरोहन्ति तत्रस्थभार्गवं ग्रहाः। "कुण्डानि अंगा वधय: क्षत्रिया: लम्बशाकुनाः ॥17॥ धामिका: शूरसेनाश्च, किराता मांससेवकाः ।
यवना भिल्लदेशाश्च प्राचीनाश्चीनदेशजा; 1180 यदि शक को अन्य ग्रह आछादिता ने हो नी विदर्भ और अंग देश के अयिय, नियादि पक्षियों का न होना है । धामिक रमन देशवानी, पस्याहारी, किमत, यवन, भिल्ल और चीन देशवासियों को नका की पीड़ा होने गीडित होना पड़ता है ।। 17-18।।
द्वितीयमण्डले शुक्रो यदास्तं यात्युदेति वा।
शारदस्योपघाताय विषमां वृष्टिमादिशत् ॥19॥ यदि हिताय माकन में अ क अम्त हो या उदित हो ता म रद् ऋतु में होनेवाली 'म-1 का उप पात होता है और वर्षा होनाधिक होती है ।। 1 911
अहिच्छत्रं च कच्छं च सूर्यावतं च पीडयेत् । 'ततोत्पातनिवासानां देशानां क्षयमादिशेत् 112011
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