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एकादशोभ्यायः
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दिखलाई पड़े तो अनेक प्रकार के लाभ और सुख, शुक्रवार को दिखलाई पड़े तो समय पर वर्षा, धान्य की अधिक उत्पत्ति और वस्त्र-व्यापार में लाभ एवं शनिवार को गन्धर्वनगर दिखलाई पड़े तो सामान्यतया अच्छी फसल होती है। ___ गन्धर्वनगर सम्बन्धी फलादेश अवगत करते समय उनकी आकृति, रंग और सौम्यता या कुरूपता का भी ख्याल करना पड़ेगा। जो गन्धर्वनगर स्वच्छ होगा उसका फल उतना ही अच्छा और पूर्ण तथा कुरूप और अस्पाट गन्धर्वनगर का फलादेश अत्यल्प होता है ।
(तत्काल वर्षा होने के निमित्त वर्षा ऋतु में जिस दिन सूर्य अत्यन्त जोशीला, दुस्सह और धूत के रंग के समान प्रभावशाली हो उस दिन अवश्य वर्षा होती है। वर्षा काल में जिस दिन उदय के समय का सूर्य अत्यन्त प्रकाश के कारण देखा न जाय, पिघले हुए स्वर्ण के समान हो, स्निग्ध वैडूर्य मणि की-सी प्रभावाला हो और अत्यन्त तीन होकर तग नहा हो अथवा आकाश में बहुत ऊँचा चढ़ गया हो तो उस दिन खूब अच्छी वर्षा होती है । उदय या अस्त के समय सूर्य अथवा चन्द्रमा फीका होकर शहद के रंग के ममान दिखलाई पड़े तथा प्रचण्ड वायु चले तो अतिवृष्टि होती है। सूर्य की अमोध किरणें सन्ध्या के ममय निकली रहे और बादल पृथ्वी पर झुके रहे तो ये महावृष्टि के लक्षण समझने चाहिए । मुर्यपिण्ड से एक प्रकार की जो सीधी रेखा कभी-कभी दिखलाई देती है, वह अमोघ किरण कहलाती है 1 बिन्द्रमा यदि कबूतर और तोते की आंखों के सदृश हो अथवा शहद के रंग का हो और आकाश में चन्द्रमा का दूसरा विम्ब दिखनाई दे तो शीघ्र ही वर्षा होती है । चन्द्रमा के परिवेग चक्रवाक की आंखों के समान हो तो वे वृष्टि के सूचक होते हैं और यदि आकाश तीतर के पत्र के समान बादलों से आच्छादित हो तो वृष्टि होती है । चन्द्रमा के परिवेश हो, तारागण में तीव्र प्रकाश हो, तो वे वृष्टि के सूचक होते हैं 11 दिशाएँ निर्मल हों और आकाश काक के अण्डे की कान्तिवाला हो, वायु का गमन रुककर होता हो एवं आकाश गोनत्र की-सी कान्तिवाला हो तो यह भी बष्टि के आगमन का लक्षण है। रात में तारे चमकते हो, प्रातःकाल लाल वर्ण का सूर्य उत्य हो और बिना वर्षा के इन्द्रधनुष दिखलाई पड़े तो तत्काल वृष्टि समझनी चाहिए । प्रातःकाल इन्द्रधनुष पश्चिम दिशा में दिखलाई देता हो तो शीघ्र वर्षा होती है। नील रंग बाले बादलों में सूर्य के चारों ओर कुण्डलता हो और दिन में ईशान कोण के अन्दर बिजली चमकती हो तो अधिक वर्षा होती है । श्रावण महीने में प्रातःका न गर्जना हो और जल पर मछली का भ्रम हो तो अठारह प्रहर के भीतर पृथ्वी जल में पूरित हो जाती है। श्रावण में एक बार ही दक्षिण को प्रचण्ड हवा चले तो हस्त, चिया, स्वाती, मूल, पूर्वापाढ़ा, श्रवण, पूर्वाभाद्रपद, रेवती, भरणी, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद और रोहिणी इन नक्षत्रों के आने पर वर्षा होती है। रात में गर्जना