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त्रयोदशोऽध्यायः
यदि राजा के उत्तर में घोड़ा घोड़े पर चढ़े तो उस समय नागरिक अन्य राजा की सेना में प्रवेश करते हैं- शरण ग्रहण करते हैं । 1441
अर्द्ध वृत्ता: ' प्रधावन्ति वाजिनस्तु युयुत्सवः । हेषमाना: प्रमुदितास्तदा ज्ञेयो जयो ध्रुवम् ॥145॥
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प्रसन्न हसते हुए युद्धोन्मुख घोड़े अर्द्धवृत्ताकार में जब दौड़ते हुए दिखलाई पड़ें तो निश्चय से जय समझना चाहिए ।। 145.
पादं पादेन भुक्तानि निःक्रमन्ति यदा हयाः । पृथग् पृथग् संस्पृश्यन्ते तदा विन्द्याद्भयावहम् ॥1461 जब घोड़े पैर को पैर से मुक्त करके चलें और पैरों का पृथक्-पृथक् स्पर्श हो तो उस समय भय समझना चाहिए ।। 146||
यदा राज्ञः प्रयातस्य पाजिक स
पथि च स्त्रियते यस्मिन्नचिरात्मा नो भविष्यति ||147||
जब प्रयाण करने वाले राजा के घोड़ों को सन्नद्ध करने वाला सई मार्ग में मृत्यु को प्राप्त हो जाये तो राजा की शीघ्र ही मृत्यु होती है ।।। 47 ॥
शिरस्यास्ये च दृश्यन्ते यदा हृष्टास्तु वाजिन: । तदा राज्ञो जयं विन्द्यान्नचिरात् समुपस्थितम् ||148 ॥ जब घोड़ों के सिर और मुख प्रसन्न दिखलाई पड़े तो शीघ्र ही राजा की विजय समझनी चाहिए || 48 ||
"हयानां ज्वलिते चाग्निः पुच्छे पाणौ पदेषु वा । जघने च नितम्बे च तदा विद्यान्महद्भयम् ॥1491
यदि प्रयाण काल में घोड़ों की पूँछ, पांव, पिछले पैर, जघन और नितम्ब - पड़े तो अत्यन्त 'मय समझना चूतड़ों में अग्नि प्रज्वलित दिखलाई चाहिए ।11491
हेमानस्य दीप्तासु निपतन्त्यचषो मुखात् । अश्वस्य विजयं श्रेष्ठमूर्ध्वदृष्टिश्च शंसते ||150m
यदि ह्रींसते हुए थोड़े के मुख से प्रदीप्त अनि निकलती हुई दिखलाई पड़े तो
1. अर्धयुक्छः 2 पादेषु वा यदि श्येनाग्निस्था
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धूमास्तदा''।