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भद्रबाहुसंहिता
जब घोड़े घास न खायें, जल न पीयें, हांफते हों या दौड़ते हों तो गग्निभय समझना चाहिए ।।। 38|
कौस्मरेण मिलान मधुरेगा पुन: पुनः ।
हेषन्ते गवितास्तष्टास्तदा राज्ञो जयावहाः ।।139।। जब क्रौंच पक्षी स्निग्ध और मधुर स्वर से बार-बार प्रसन्न और गर्वित होता हुआ शब्द करे तो राजा के लिए जय देने वाला समझना चाहिए ।।। 39॥
प्रहेषन्ते प्रयातेषु यदा वादिननि:स्वनैः ।
लक्ष्यन्ते बहवो हृष्टास्तस्य राज्ञो ध्रुवं जयः ।।140॥ जिस राजा के प्रयाण करने पर बाजे शब्द करते हुए दिनलाई पड़ें तथा अधिकांश व्यक्ति प्रसन्न दिखलाई पड़ें, उस राजा की निश्चयतः जय होती है ।।।401
यदा मधुरशब्देन हेषन्ति खलु वाजिनः ।
कुर्यादभ्युत्थितं संन्यं तदा तस्य पराजयम् ।।141॥ जब मधुर शब्द करते हुए थोड़े हीराने की आवाज करें तो प्रयाण करने वाली शेना को पराजय होती है ।। 14 |||
अभ्युत्थितायां सेनायां लक्ष्यते यच्छुभाशुभम् ।
वाहने प्रहरणे वा तत् तत् फलं समीहते ।।। 42॥ प्रयाण करने वाली सेना के बाहन -- सवारी और प्रहर---अस्त्र-शस्त्र सेना में जितने शुभाणा शहुन दिखलाई पड़ें उन्ही के अनुसार फल प्राप्त होता है 11142।
सन्नाहिको यदा युक्तो नष्टसैन्यो बहिवजेत् ।
तमा राज्यप्रणाशस्तु अचिरेण भविष्यति ।।143॥ जब बनर से युक्त गना रति सेना क न होने पर बाहर चला जाता है तो शीघ्र ही राज्य का विनाश हो जाता है ।।!4311
सोम्यं बाह्य नरेन्द्रस्य हयमारुहते ह्यः । सेनायामन्यराजानां तदा मार्गन्ति नागरा: ।।14401
1. अगवा व मु. ।