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भद्रबाहुसंहिता
विजय होती है । घोड़े का ऊपर को मुख किये रहना भी अच्छा समझा जाता
है 17501
श्वेतस्य कृष्णं दृश्येत पूर्वकाये तु वाजिन ! हन्यात् तं स्वामिनं क्षिप्रं विपरीते 'धनागमम् 11151।।
यदि घोड़े का पूर्व भाग श्वेत या कृष्ण दिखलाई पड़े तो स्वामी की मृत्यु शीघ्र कराता है । विपरीत परभाग- श्वेत का कृष्ण और कृष्ण का श्वेत दिखलाई पड़े तो स्वामी को धन की प्राप्ति होती है 115 111
वाहकस्य वधं विन्द्याद् यदा स्कन्धे यो ज्वलेत् । पृष्ठतो ज्वलमाने तु भयं सेनापतेर्भवेत् ।। 1521
जब घोड़े का स्वन्ध – कन्धा जलता हुआ दिखलाई पड़े तो सवार का वक्ष और पृष्ठ भाग ज्वलित दिखलाई पड़े तो सेनापति का वध समझना चाहिए ।।152।।
तस्यैव तु यदा धूमो निर्धाति प्रहेषतः । पुरस्यापि तदा नाशं निर्दिशेत् प्रत्युपस्थितम् 111530
यदि हृींसते हुए घोड़े का धुआँ पीछा करे तो उस नगर का भी नाश उपस्थित हुआ समझना चाहिए ||153॥
सेनापतिवधं विद्याद् वालस्थानं यदा ज्वलेत् । वीणि वर्षान्यनावृष्टिस्तदा तद्विषये भवेत् ।।15400
यदि घोड़े के वास्थान--- कस्वारस्थान जलने लगे तो सेनापति का वध समझना चाहिए। और उस देश में तीन वर्ष तक अनावृष्टि समझनी चाहिए ||15411
अन्तः पुरविनाशाय मेढ़ प्रज्वलते यदा ।
उदरं ज्वलमानं च कोशनाशाय वा ज्वलेत् ||155॥
यदि घोड़े का मेढू अण्डकोश स्थान जलने लगे तो अन्य पुर का विनाश और उदर के जलने से कोशनाश होता है | 1155
शेरते दक्षिणे पार्श्व हयो जयपुरस्कृतः । स्वबन्धशायिनश्चा हुर्जयमाश्चर्यसाधक: ।। [561
1. धागमम् भु. 2. वाचवास्थ मु० ।