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भद्रबाहुसंहिता
चाहिए ॥12511
विलोमषु च वातेषु 'प्रतीष्टं वाहनेऽपि च ।
शकुनेषु च दोप्तेषु युध्यतां तु पराजयः ।। 126॥ उलटी हवा चलती हो, वाह्न -सवारियां प्रदीप्त मालूम पड़ें और शकुन भी दीप्त हों तो युद्ध करने वाले की पराजय होती है ।।126॥
युद्धप्रियेषु हृष्टेषु नर्दस वृषभेषु च।
रक्तेषु चाभ्रजालेषु सन्ध्यायां युद्धमादिशेत् । 127॥ प्रयाण-काल में तगड़े, हट्टे-कट्ट एवं युद्धप्रिय (लड़ाकू) साँड़ों, बैलों आदि के गर्जना करने पर और सन्ध्याकाल में बादलों से लाल होने पर युद्ध की सूचना समझनी चाहिए ।।127!|
अभ्रषु च विवर्णेषु बढोपकरणेषु च।
दृश्यमानेषु सन्ध्यायां सद्यः संग्राममादिशेत् ॥128॥ ग्रद्ध उगारण . अग्न-शम्बादि मायामाज में वालों के विवर्ण दिगलाई देन पर शीघ्र ही युद्ध का निर्देश समझना चाहिए ॥12811
कपिले रक्तपीते वा हरिते च तले चमः।
स सद्य: परसैन्येन बध्यते नात्र संशयः ।।129।। यदि प्रयाण-काल में सेना कपिल वर्ण, हरित, रक्त और पीत वर्ण के बादलों के नीचे गमन करे तो सेना निस्सन्देह शीघ्र ही शत्रुगेना के द्वारा वध को प्राप्त होती है ।12911
काका गृध्राः शृगालाश्च कंका ये चामिप्रियाः।
एश्यन्ति यदि सेनायां प्रयातायां भयं भवेत् ।।1301 यदि प्रयाण करने वाली गना के समक्ष काक, गृद्ध, शृगाल और मांसप्रिय अन्य चिड़ियाँ दिखलाई पड़ें तो सेना को भय होता है 11 3011
उलूका वा विडाला वा मूषका वायदा भृशम् ।
वासन्ते यदि सेनायां निश्चित. स्वामिनो वधः ।।13।। यदि प्रयाण करने वाली राना में उल्लू, विडाल या मूषका अधिक संख्या में निवास करें तो निश्चित रूप से स्वामी का वध होता है ।। ! 31॥
1. दिनेषु, वाहिनाप गुरु । 2. नियतं सोऽदिता को वक्षः मु॥ ।