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अयोदशोऽध्यायः
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कम तथा संनिकों के वाहन भी विकृत शब्द न गारें तो शुभ फाल होता है ।। । 19।।
यद्यग्रतस्तु प्रयायेत काकसन्यं प्रयायिणाम् ।
विस्वरं निभृतं वाऽपि येषां विद्यांच्चभूवधम् ॥1200 यदि प्रयाण करने वालों के आगे नागेना-कौओं की संक्ति गमन करे अथवा विकृत स्वर करती हुई काकपंक्ति लौटे तो रोना का वध होता है ।। 1200
राजो यदि प्रयातस्य गायन्ते ग्रामिका: परे।
चण्डानिलो नदी शुष्येत् सोऽपि बध्येत पार्थिवः ॥121॥ यदि प्रयाण करने वाले राजा के आगे नाग बासी नारियो गाना (ग्दन करती) गाती हों और प्रचण्ड वायु नदी को सुखा दे तो गजा के वध गी गुगना सगझनी चाहिए ।।12111
देवताऽतिथिभृत्येभ्योऽदत्वा तु भंजते यदा।
यदा भक्ष्याणि भोज्यानि तदा राजा विनश्यति ॥12231 देवता की पूजा, अतिथि का सत्कार और भत्यों को विना दिये गो भोजन करता है, वह राजा विनाश को प्राप्त होता है ।। 1 22।।
द्विपदाश्चतुःपदा वाऽपि यदाऽभीक्ष्णं रदन्ति वै।
परस्परं सुसम्बद्धा सा सेना बध्यते परैः ।।123॥ द्विपद-मनुष्यादि अथवा चतुष्पद - पशु आदिनापाथ परस्पर में सुगंगठित होकर आवाज करते हैं गर्जना करते है, तो गना ओ बाप बध को प्राप्त होती है ।।1 23।।
ज्वन्ति यस्य शस्त्राणि नमन्ते निष्क्रमन्ति वा।
सेनायाः शस्त्रकोशेभ्य: साऽपि सेना विनश्यति ।।।2411 यदि प्रयाण के समय सेना के अस्त्र-शस्त्र ज्वलन्त होने लगें अपने आप झुकने लगे अथवा शस्त्रकोश से बाहर निकलने लगे तो भी सेना का विनाशा होता है ॥124॥
नर्दन्ति द्विपदा यत्र पक्षिगो बा चतुष्पदाः।
अव्यादास्तु विशेषेण तत्र संग्राममादिशेत् ।।।25।। द्विपद पक्षी अथवा चतुष्पद चौपाये गर्जना करता हो अथवा विशेष रूप से मांसभक्षी पशु-पक्षी गर्जना करते हो तो संग्राम की सूचना समझनी
1. राम ।