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नवमोऽध्यायः
के लिए प्रयाण करनेवाले राजा की सेना सदा पराजित होती है 115811
तिथीनां करणानां च मुहूर्तानां च ज्योतिषाम् । नेता तस्माद् यत्रैव मारुतः 1159
मारुतो बलवान्
तिथियों, करणों, मूहर्ता और ग्रह नक्षादिकों का बलवान् नेता वायु है, अतः जहाँ वायु है, वहीं उनका बल समझना चाहिए |:59 ।।
वायमानेऽनिले पूर्व मेघांस्तत्र समादिशेत् । उत्तरे वायमाने तु जलं तत्र समादिशेत् ॥60
यदि पूर्व दिशा में पवन चले तो उस दिशा में मेघों का होना कहना चाहिए और यदि उत्तर दिशा में पवन चने तो उस दिशा में जय का होना कहना चाहिए ||600
ईशाने वर्षणं ज्ञेयमाग्नेये नंऋषि च । याम्येव विग्रहं ब्रूयाद् भद्रबाहूवचो यथा ॥७ ॥ ॥
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यदि ईशान कोण में पवन ने तो वर्षा का ये जानना चाहिए और यदि नैऋत्य तथा पूर्व-दक्षिण दिशा में वन बने तो शुद्ध का होना कहना चाहिए ऐसा प्रवाहस्वामी का वचन है ॥6॥॥॥
सुगन्धेषु प्रशान्तेषु स्निग्धेषु मार्दवेषु च । वायमानेषु वातेषु सुभिक्षं क्षेममेव च ॥620
यदि चलने वाले पवन सुगन्धित, प्रशान्त, स्निग्ध एवं कोमल हो तो सुशिक्ष और क्षेत्र का होना ही कहना चाहिए 162 ||
महतोऽपि समुद्भूतान् सतडित् साभिगजितान् । मेघान्निहनते वायुनेऋतो दक्षिणाग्निजः ॥163॥
नैऋत्यकोण, अग्निकोष तथा दक्षिण दिशा का पवन उन बड़े मेघों को भी नष्ट कर देता है -बरन नहीं देता, जो चमकती बिजली और भारी गर्जना में युक्त हों और ऐसे दिखाई पड़ते हो कि अभी बरसेंगे 11631
सर्वलक्षणसम्पन्ना मेघा मख्या जलवहाः । मुहूर्त्तादुत्थितो वायुर्हन्यात् सर्वोऽपि नैर्ऋतः ॥ 64
सभी शुभ लक्षणों के सम्पन्न जन्न को धारण करने वाले जो मुख्य मेघ है, उन्हें भी नैऋत्य दिशा का उठा हुआ पूर्व पवन एक मन में
कर देता है |641|
1 दिन में लोकों की गंगा में होने से ग्लो