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भद्रबाहुसंहिता
दिशा में पवन चले तो उस समय बीर-नीति को उपलब्धियां बड़ी ही प्रयत्नसाध्य होती हैं ।। 521
यदा सपरिघा सन्ध्या पूर्वो वात्यनिलो भृशम् ।
पूर्वस्लिीव विभाग पश्चिमा बध्यते चमः ।।53॥ यदि प्रात: अथवा सायंकाल की सन्ध्या परिघसहित हो--सूर्ष को लाँघती हुई मेरों की पंक्ति से युक्त हो-और उस समय पूर्व का वायु अतिवेग से चलता हो तो पूर्व दिशा में ही पश्चिम दिशा की सेना का वध होता है ।। 53||
यदा सपरिघा सन्ध्या पश्चिमो वाति मारुतः।
परस्मिन् दिशो भागे पूर्वा स वध्यते चमू: 154।। यदि सध्या सारिघा - सूर्य को लांघती मेषपंक्ति से युक्त हो और उस समय पश्चिम पवा चले तो पूर्व दिशा में स्थित सेना का पश्चिम दिशा में बध होता होता है ।।54॥
यदा सपरिघा सन्ध्या दक्षिणो वाति मारुतः।
अपरस्मिन् दिशो भागे उत्तरा वध्यते चमः ।।55॥ यदि सन्ध्या सपरिणा-सूर्य को लांघती हुई मेगपंक्ति से युक्त हो-और उस समय दक्षिण का वायु चलता हो तो उत्तर की सेना का पशिवम में वध होता है ।।551
यदा सपरिघा सन्ध्या उत्तरो वाति मारुतः ।
अपरस्मिन् दिशो भागे दक्षिणा बध्यते चमूः ॥56। यदि सन्ध्या सपरिया -सूर्य को लांघती हुई मेघपंक्ति से युक्त हो और उस समय उत्तर का गबन चले तो दक्षिण की सेना का उत्तर दिशा में बध होता है ।।561
प्रशस्तस्तु यदा वातः प्रतिलोमोऽनुपद्रवः ।
तदा यान् प्रार्थयेत् कामांस्तान प्राप्नोति नराधिपः ।।571 जर प्रतिलोम वायु प्रशस्त हो और उस समय कोई उपद्रव दिखाई न पड़ता हो तो राजा जिन कार्यों को चाहता है वे उसे प्राप्त होते हैं... - राजा के अभीष्ट की सिद्धि होती है ।। 571
अप्रशस्तो यदा वायु भिपश्यत्युपद्रवम्।
प्रयातस्य नरेन्द्रस्य चमूरिवते सदा ॥58॥ परिवायु अपशस्त हो और उस समय कोई उपद्रव दिखाई न पड़े तो युद्ध