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भद्रबाहसंहिता
सर्वथा बलवान् वायुः स्वचक्रे निरभिग्रहः । करणादिभिः संयुक्तो विशेषेण शुभाशुभः ॥1650
अभिग्रह से रहित वायु स्वचक्र में सर्वथा बलवान् होता है और करणादिक से संयुक्त हो तो विशेषरूप से शुभाशुभ होता है— शुभ करणादि से युक्त होने पर शुभफल सूचक और अशुभ करणादिक से युक्त होने पर अशुभसूचक होता है ||65 1
इति नैन्ये भद्रबाहु नैमित्तं वातलक्षणो नाम नवमोऽध्यायः ।
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विवेचन - वायु के चलने पर अनेक बातों का फलादेश निर्भर है। वायु द्वारा यहाँ पर आचार्य ने केवल वर्षा, कृषि और सेना, सेनापति राजा तथा राष्ट्र के शुभाशुभत्व का निरूपण किया है। वायु विश्व के प्राणियों के पुण्य और पाप के उदय से शुभ और अशुभ रूप में चलता है। अतः निमित्तों द्वारा वायु जयत् के निवासी प्राणियों के पुण्य और पाप को अभिव्यक्त करता है । जो जानकार व्यक्ति हैं, वे बाप के द्वारा भावी फल को अवगत कर लेते हैं। आषाढ़ी प्रतिपदा और पूर्णिमा से दो तिथि इस प्रकार की हैं, जिनके द्वारा वर्षा, कृषि, व्यापार, रोग, उपद्रव आदि के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। यहाँ पर प्रत्येक फलादेश का क्रमश: निरूपण किया जाता है ।
वर्षा सम्बन्धी फलादेश आयाढ़ी प्रतिपदा के दिन सूर्यास्त के समय पूर्व दिशा में बायु चले तो आश्विन महीने में अच्छी वर्षा होती है तथा इस प्रकार के वायु से अगले महीने में भी वर्षा का योग अवगत करना चाहिए। रात्रि के समय जब आकाश में मेघ छाये हुए हों और धीमी-धीमी वर्षा हो रही हो, उस समय पूर्व का वायु चले तो भाद्रपद मास में अच्छी वर्षा की सूचना समझनी चाहिए। इस तिथि को यदि मेत्र प्रातःकाल से ही आकाश में हों और वर्षा भी हो रही हो, तो पूर्व दिशा का वायु चतुर्मास में वर्षा का अभाव सूचित करता है । तीत्र धूप दिन भर पड़े और पूर्व दिशा का वायु दिन भर चलता रहे तो चातुर्मास में अच्छी वर्षा का योग होता है। आषाढ़ी प्रतिपदा का तपना उत्तम माना गया है, इससे चातुर्मास में उत्तम वर्षा होने का योग समझना चाहिए। उपर्युक्त तिथि को सूर्योदय काल में पूर्वीय वायु चले और साथ ही आकाश में मेघ हों पर वर्षा न होती हो तो श्रावण महीने में उत्तम वर्षा की सूचना समझनी चाहिए। उक्त तिथि को दक्षिण और पश्चिम दिशा का वायु जले तो वर्षा चातुर्मास में बहुत कम या उसका बिल्कुल अभाव होता है । पश्चिमी वायु चलने से वर्षा का अभाव नहीं होता, बल्कि श्रावण में घनघोर वर्षा, भाद्रपद में अभाव और आश्विन में अल्प वर्षा होती है। दक्षिण दिशा का वायु वर्षा का अवरोध करता है। उत्तर दिशा का वायु चलने से भी वर्षा का अच्छा योग रहता है। आरम्भ में कुछ कमी रहती है, पर अन्त तक समयानुकूल और आवश्यकतानुसार होतो जाती है | आषाढ़ी