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षष्ठोऽध्यायः
यदा राज्ञः प्रयाणे तु यान्यभ्राणि शुभानि च ।
अनुमाणि स्निग्धानि तदा राज्ञो जयं वदेत् ॥७॥ राजा के प्रयाण के समय यदि शुभ रूप बादल हों और वे राजा के मार्ग के साथ-साथ गमन करें, स्निग्ध हों तो उस यात्रा में राजा की विजय होती है ।।911
रथायुधानामश्वानां हस्तिनां सदशानि च।।
यान्यनतो प्रधावन्तिः जयमायान्त्युपस्थितम् 110 रथ -- गाड़ी, मोटर तथा आयुध--तलवार, बन्दुक और हाथो आदि प्राणियों के सदृश बादल राजा के आगे-आगे गमन करें तो वे उसकी जय की सूचना देते हैं।।1011
ध्वजानां च पताकानां घण्टानां तोरणस्य च ।
सदशान्यग्रतो यान्ति जयमाख्यान्त्यपस्थितम ॥ ध्वजा, पताका, घण्टा, तोरण इत्यादि की आकृति वाल वान 11 प्रयाण समय आग-आगे चलें तो उनसे राजा वी विजय सूचित होती है
शुक्लानि स्निग्धवर्णानि पुरत:" पृष्ठतोऽपि वा।
अभ्राणि दीप्तरूपाणि जयमाख्यान्त्युपस्थितम् ।।।2।। श्वेत और चिकने दादल राजा के आगे अथवा पीछे चमकते हुए ममन पारे तो बिजयलक्ष्मी उसके सामने उपस्थित रहती है --युद्ध में उरी विजय मिलती है।।12।
चतुष्पदानां पक्षिणां कव्यादानां च दंष्ट्रिणाम् ।
सदृशप्रतिलोमानि बधमाल्यानान्त्युपस्थितम् ॥13॥ चौपायों - 'भैसा, शूकर', गधा आदि पशुओं और गांसभक्षी कर पक्षियों - . गीध, कार, बगुला, बाज, तीतर आदि पक्षियों एवं दांत वाले सिंहादि हिंगक प्राणियों के आकार वाले बादल शाजा के युद्धार्थ गमन करते समय प्रतिलीम गति -अपराव्य मार्ग भ गमन करते हुए दिखाई दें तो राजा का शाल अश्या पराजय होती है।।131
भोल म• C.2. पागधामा ॥ यदाय धम्न।म, म. C.। 3. अभिधान्ति शुक C.4. प्रस्तात् म | 5. बाणां मु• BI