SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीयोध्यायः पूर्व परम्परा के अनुसार फलादेश का निरुपण करता हूँ । यदि उल्ला अग्रभाग से गिरे तो देश के मार्ग का नाश करती है। यदि मध्यभाग से मिरे तो देश के मध्यभाग के और पूंछ भाग से गिरे तो देश के पृष्ठ भाग के विनाश की सूचना देती है । मध्यम-समान साधारण अवस्थावाली उल्का का घनन भी प्रशस्त नहीं होता है ।।13-1411 23 स्नेहवत्योऽन्यगामिन्यो प्रशस्ताः स्युः प्रदक्षिणाः । उत्पादि पतेविना 'पक्षिणमहिताय सा ।। 150 मध्यम उल्का स्नेहयुक्त होती हुई दक्षिण मार्ग से गमन करे तो वह प्रशस्त है और चित्र-विचित्र रंग की मध्यम उत्काएँ वाम मार्ग से गमन करे तो पक्षियों के लिए अहित कारक होती हैं ॥ 5॥ श्याम-लोहितवर्णा च सद्यः कुर्याद् महद्भयम् । उल्कायां भस्मवर्णायां पर गमो भवत् ॥6॥ काली और कालवर्ण की उल्का गिरे तो वह गोत्र ही महाभय की है तथा भस्मवर्ण को उसका परच का आना सूचित करती है || 1 || अग्निमग्निप्रभा कुर्याद् व्याधिमञ्जिष्ठसन्निभा । नोला कृष्णा च धूम्रा च शुक्ला वाऽसिसमद्युतिः ॥17॥ उल्का नीचैः समा स्निग्धा पतन्ति भयमादिशेत् ॥17॥ सूचना देती शुक्ला रक्ता च पीता च कृष्णा चापि यथाक्रमम् । चतुर्वर्णा विभक्तव्या साधुनोक्ता यथाक्रमम् ॥8॥ अग्नि की प्रभावशाली उसका अग्नि का भय करती है। मंजिल के रागान रंगवाली उल्का व्याधि की सूचना देती है। नील कृष्ण, धूम्र तलवार क समान तिवानी उल्का नीच प्रकृति जधम होती है। स्निग्ध उल्का राम प्रकृतिवाली होती है। शुक्न, खत, गीत और कृष्ण इन यांवाली उल्का क्रमशः ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र वर्ण में विभाजित समझनी चाहिए। से चारों वर्णवाली उल्काएँ क्रमशः ब्राह्मणादि चारों वर्णो को भय की सूचना देती है, ऐसा पूर्वाचार्यों ने कहा है | अभिप्राय यह है कि श्वेतवर्ण की उलाह्मण संज्ञक है, इसका फलादेश ब्राह्मण वर्ण के लिए विशेष रूप से और सामान्यतः अन्य वर्णवालो को भी प्राप्त होता है। इसी प्रकार रक्त से क्षत्रिय, गीत ग वैश्य और कृष्ण से सूवर्ण के लिए प्रधानतः फल और गौण रूप से अन्य वर्णवालों को भी फलादेश प्राप्त होता है ।117-18। 12. दक्षिण A. D. 13. महा मु० C. 4. एणं afana go, B. vad vi kan so kùa, yo D.
SR No.090073
Book TitleBhadrabahu Sanhita Part 1
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages607
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy