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भद्रबाहुसंहिता उदीच्या ब्राह्मणान् हन्ति प्राच्यामपि च क्षत्रियान्।
वैश्यान् निहन्ति याम्यायां प्रतीच्यां शूद्रघातिनी ॥19॥ यदि उल्का उत्तर दिशा में गिरे तो ब्राह्मणों का घात करती है, पूर्व दिशा में गिरे तो क्षत्रियों का, दक्षिण दिशा में गिरे तो वैश्यों का और पश्चिम दिशा में गिरे तो शुद्रों का घात करती है 1119।।
उल्का रूक्षेण वर्णन स्वं स्वं वर्ण प्रबाधते।
स्निग्धा चैवानुलामा च प्रसन्ना च न बाधते ॥20॥ जाका रूक्ष वर्ष से अपनाने की जाती हैं- श्वेतवर्ण की होकर रूक्ष हो तो ब्राह्मणों के लिए बाधासूचक, रक्तवर्ण की होकर रूक्ष हो तो क्षत्रियों को बाधासूचक, पीतयणं की होकर रूक्ष हो तो बैंश्यों को बाधासूचका और कृष्णवर्ण या होकर रूक्ष हो तो शुद्रों को बाधासुचक होती है। स्निग्ध और अनुलोम--सव्यमाग तथा प्रसन्न उल्का हो ना शुभ होन स अपने-अपने वर्ण को बाधा नहीं देती है ।। 2011
या चादित्यात पतेदुल्का वर्णतो वा दिशोऽपि वा।
तं तं वर्ण निहन्त्याशु वैश्वानर इवाचभिः ॥2॥ जो उल्ला सूर्य से निकलकर जिरा वर्ण की होकार जिस दिशा में गिरे उस वर्ण और दिशा पर से उसी-उसी वर्णवाल को अग्नि बी ज्वाला के समान शीघ्र नाश करती है ।।211
अनन्तरां दिशं दीप्ता येषामुल्काग्रत: पतेत् ।
तेषां स्त्रियश्च गर्भाश्च भयमिच्छन्ति दारुणम् ॥2॥ यदि जल्या अन्य हित दिशा को दीत ती हुई अनाग में गिरती स्त्रियों और गभी को भयानर, भय करता है अर्थात् गर्भवास की मुचि है !12 2।।
कृष्णा नीला च रूक्षाश्च प्रतिलोमाश्च गहिताः।
पशुपक्षिसुसंस्थाना भैरवाश्च भयावहाः ॥23॥ सण अथवा नील वर्ण की सलका प्रतिलोम---उन यांत अरसन्य माग-- या स गिरे तो निन्दित है। यदि प.-"TT बाला हो तो गयोत्पादक होती ह ॥2311
अनुगच्छन्ति याश्चोलका बाह्यास्तल्का समन्ततः ।
वसानुसारिणो नाम सा त राम विनाशय ॥2411 I. .in वर्णन भ. 1 2. या २iti! | 3.4. मr !! . . ! 5. वर्णानुसाई या भु।