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पारसाण पेपरवा
अद्भुव मसरण मेगत्त मण्णसंसार लोग मसुचित्तं। आसव संवर णिज्जर धम्मं बेहिंच चिंतेज्जो ॥२॥
अर्थ :- अध्रुव (अनित्य) अशरण, एकत्व, संसार, लोक, आशुचित्व, आम्रव, संबर, निर्जरा, धर्म और बोधि इनका चिंतन करो आचार्य श्री उमा स्वामी महाराज ने इन बारह अनुपेक्षाओं का क्रम तत्वार्थ सूत्र में इस प्रकार दिया है।
अनित्याशरण संसार भावान्यः प्रामुख्या नट मंबा सिमरस लोक अधि दुलर्भ धर्म स्याख्यातत्त्वानुचिन्तन मनु प्रेक्षाः ॥८१९|| तत्त्वार्थ सूत्र
अर्थ :- अनित्य, अशरण संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचि, आस्त्रव, संवर निर्जरा, लोक बोधि दुर्लभ, और धर्मस्वाख्यातत्व का बार बार चिन्तवन करना अनुप्रेक्षायें हैं।
आचार्य श्री अमृत चन्द्र महाराज ने परुषार्थ सिद्ध उपाय ग्रन्थ जी में आचार्य कुन्द कुन्द स्वामी आचार्य श्री उमा स्वामी महाराज के क्रम से प्रथक क्रम में रखा है। आचार्य श्री वट्टकेर महाराज द्वारा विराचित मूलाचार जी में बारसाणु पेक्खा के अनुसार ही क्रम है। अनुप्रेक्षाओं का आचार्य कुन्द कुन्द स्वामी आचार्य श्री वट्टकेर स्वामी आचार्य श्री अमृत चन्द्र स्वामी के नाम समानरूप से दिये हैं आचार्य उमा स्वामी ने अध्रुव के स्थान पर अनित्य नाम रखा है प्रथम अनुपेक्षा का आचार्य अमृत चन्द्र स्वामी ने संसार भावना को जन्म नाम से कहा है। पुरुषार्थ सिद्ध उपाय में निम्न कारिका में अनुप्रेक्षा की है।
अध्रुवमशरण मेकत्व मन्यता ऽशौच मासवो जन्म। लोकवृष बोधि संवर निर्जराः सतत मनुपेक्ष्याः ॥२०५।। पु. उ.
(१) अनित्य भावनाः- सामग्री, इन्द्रियां, रूप, यौवन, जीवन बल तेज घर शासन आसन वर्तन आदि सब अनित्य है। ऐसा चिंतवन करें प्रथम अध्रुव अनुप्रेक्षा हैं।
(२) अशरण भावना:- घोड़ा, हाथी, रथ, मनुष्य, बल वाहन, मन, औषधि, विद्या, माया नीति और बन्धु वर्ग ये मृत्यु के भय से रक्षक नहीं है। ऐसा चितवन करना अशरण अनुप्रेक्षा है।
(३) एकत्व भावना:- अकेला ही यह जीव कर्म करता है। एकाकी ही दीर्घ संसार में भ्रमण करता है। अकेला ही जन्म लेता है। अकेला ही मरता है। इस प्रकार से एकल का चिंतन करता एकल अनुप्रेक्षा है।