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बारसाणु वरना
इतना विपुल साहित्य का सृजन आचार्य की बहुमुखी तीक्षण प्रतिभा ज्ञान कोष का ही फल है। पर दुर्भाग्य है आज हमारे पा उपर्युक्त ग्रन्थ अनुपलब्ध है। इसका कारण या हमारी समाज की साहित्य के प्रति उदास वृत्ति या फिर विरोधी कारणों से क्षति हुयी साहित्य दर्शन के प्राण करते हैं। आचार्य कुन्द कुन्द स्वामी ने दिगम्बर वीतराग मार्ग के बहुश्रुत प्रदान किया यह हम सभी पर आचार्य श्री की असीम कृपा दृष्टि रही है। अभी क्षण ज्ञानोपयोगी आचार्य श्री कुन्द कुन्द स्वामी ने अनेक पाहुण ग्रन्थों के साथ अनुप्रेक्षा ग्रन्थ भी लिखा बारसाणु पेक्खा ग्रन्थ आचार्य श्री की एक अनुपम कृति है। जिसमें बारह भावनाओं का बहुत सुन्दर वर्णन किया गया है। वैराग्य को जन्म देने वाली ये बारह भावनायें हैं। जिन्हें आगम में माँ की उपमा दी है जैसे मॉ पुत्र को जन्म देती है। एवं रक्षा करती है उसी प्रकार मुमुक्षु को वैराग्य वृद्धि का कारण एवं वैरागी के वैराग्य की रक्षा कवच ये अनुप्रेक्षायें हैं। तत्त्वार्थवार्तिक जी में आचार्य श्री भट्ट अंकलक देव ने अनुपेक्षा की परिभाषा बताते हुए कहा
शरीरादीनां स्वभावानु चिन्तन पेक्षा वेदितव्याः
भावादि साधनः आकार: अर्थात् :- शरीर आदि के स्वभाव का बार बार चिन्तन करना अनुप्रेक्षा है अनुप्रपूर्व धातु से भाव साधन से आकर होने से अनुप्रेक्षा शब्द बनता है। ये अनुपेक्षा अनुप्रेक्षायें ही प्रत्याख्यान प्रतिक्रमण आलोचना तथा समाधि है अत: इनका हमेशा चिन्तन करना चाहिए।
बारस अणुपेक्खा पच्चक्खाणं तहेव पडिकमणं । ओलाघणं समाहि तम्हा भावेज्ज अणुवेक्खं ॥८७|| (बारसाणुपेक्खा) आचार्य श्री ने अनुपेक्षाओं का वर्णन करते हुए कहा हैमोक्ख गया जे पुरिसा अणाइकालेण बारअणु पेक्खं । परिभाविऊग सम्मं पणमामि पुणो पुणो तेसिं ॥८९॥ (बारसाणु पेक्खा)
अर्थ - अनादि काल से आज तक जितने भी पुरुष मोक्ष गये हैं वे सब इन बारह अनुप्रेक्षाओं को अच्छी तरह से या करके ही गये हैं। उन सभी सिद्धों को विधि पूर्वक बारम्बार नमस्कार करता हूँ। इस ग्रन्थ में आचार्य श्री बारह भावना का साल सुबोध शैली में वर्णन किया है।