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રિરાષ્ટ્ર ધારવા
आचार्य कुन्द- कुन्द स्वामी :- तीर्थंकर भगवान महावीर गौतम स्वामी की उत्तरवर्ती आचार्य परम्परा में जिनका नाम गौरव के साथ लिया जाता है जिनके व्यक्तित्व एवं कृतित्त्व ने जन जन को अपनी ओर आकर्षित कर लिया अध्यात्म की मूर्ति जिनवाणी में मंत्र शक्ति छुपी हुई है जो एक बार आचार्य कुन्द कुन्द स्वामी की वाणी का पान कर लेता वह कुन्द कुन्द मय हो जाता है आचार्य श्री का साहित्य सिंहनी का दुग्ध है स्वर्ण पात्र में ही धारण किया जा सकता है। आचार्य श्री के साहित्य को जानने के पूर्व नय का ज्ञान होना आवश्यक है जिसे आलाप पद्धति का ज्ञान नहीं है उसे कुन्द कुन्द भगवान की देशना नहीं सुननी चाहिए अध्यात्म ग्रन्थों के अध्ययन के पूर्व सिद्धांत ग्रन्थों का अध्ययन पूर्ण आवश्यक है। आचार्य श्री ने उभय नय का कथन किया है निश्चय नय व्यवहार नय दोनों नयों को जानने वाला ही जिनेन्द्र वाणी को समझ सकता है। किसी एक नय को मात्र स्वीकार करने वाला कभी भी जिन देशना सुनने का पात्र नहीं है। न बह वक्ता कहलाने का पात्र है। आचार्य श्री अमृत चन्द्र स्वामी ने ग्रन्थराज पुरूषार्थ सिद्ध उपाय में कहा भी है
व्यवहार निश्चयो य: प्रबुध्य तत्त्वेन भवति मध्यस्थः।
प्राप्नोति देशनायः स एव फलमविकले शिष्यः ॥८॥ अर्थात् :- जो वास्तविक रूप से व्यवहार नय और निश्चय नय दोनों को जानकर मध्यस्थ हो जाता है यानी कि किसी एक नय का सर्वथा एकांती न बनकर अपेक्षा दृष्टि से दोनों नयों को स्वीकार करता है वह ही उपदेश सुनने वाला (सुनाने वाला) उपदेश के सम्पूर्ण फल को प्राप्त करता है। मात्र निश्चय नय को ही स्वीकार करता है वह मिथ्या दृष्टि है उभय नय का कथन करने वाला ही वास्तविक ज्ञानी है सम्यक्दृष्टि है निरपेक्ष कथन मिथ्या होता है।
आचार्य भगवन समन्त भद्र स्वामी ने देवागम स्त्रोत्र में कहा है निरपेक्षा नया मिथ्यां जो नय अपेक्षा से रहित होता है वह मिथ्या नया कुनय है सुनय नहीं जैनागम सुनय को स्वीकार करता है कुनय को नहीं। जब भी कथन किया जाय पात्र देखकर ही कथन होना चाहिए। आचार्य श्री कुन्द कुन्द स्वामी ने स्वयं अपने ग्रन्थ राज समय पाहुण में कथन किया है।