________________
गाई जीतमति एवं उसके समकालीन कवि
रुति वसंत सोहत वन जिसी । मुनिवर पुन्य भयो वन तिसौ ।। हम प्रसोक सुदरता माहि । ताको प्रति सुदर शुभ छोहि ॥५१।। सब सुष करि श्रीपाल हि वीठ । ताकी लाग्यो मन को ईठ ॥ ता करि सुख चित्त दुषहत । मुनिवर बैठ्यो महा महंत ॥५२॥ देष्यो श्रीपाल परमेस । मनमें उपज्यो सुष मसेस ।। एक परम पद जान जोइ । बेतन गुन पाराध सोइ ।।५३।।
मुनि वर्णन
राग रेस नहि जाके विस । संयम केवल पाल मित्त ।। तीन गुपति पाले परमस्य । रत्नत्रय मुषन समरत्य ॥५४॥ तीन सल्लि फेशन सिवकत । पाल परन जगुवल्लम संस । भव जलनिधि तारन जिहाज । पंच महावस पर मुनिराज ।।५।।
मकरध्वज पंड्यो धरि भाउ । छहौं दरबगुम भासम राड़ ।। अट्ठ कर्म माया मद हरण । अट्ट सिद्ध गुन धारण सररण ॥५६॥ नवविधि ब्रह्मचर्य प्रतिपास । दसलमा गुगा धरण दयाल ।। एकादस प्रतिमां जिय माहि। द्वादशांग भासन जो प्राहि ॥५॥
यारा विधि सप कर प्रमान । द्वादस मनोवृत घरन सुजान ।। वाइस परीसह सहन जझार | पंच महारत पालन हार ।।५।।
देषत उपज हषि विसाल । प्रेसी मुनि बंद्यो श्रीपाल | सीन प्रदक्षणा दीनी ताहि । निमसकार कीपो ता काहि ॥५॥
मापन अंतेवर परखांन । नगर लोग संजून समान ।। बैठ्यो ता मुनीस के पास । प्रति मामदित भयो उल्हास ।। सब मिलि प्रस्तुति कीनी जब । धर्मवृद्धि मुनि दीनी तबै ।।६।।
बहुर्यो निमस्कार करि राउ । पूछन लागो मनि धरि भाउ ।। भों मुनि करुना सरवर बीर । कही धर्म बुद्धि गुनगंमोर ॥६१|| जाते जीवन मरन न होइ । मात भौन सरीरह होछ । दुरगति पंथ निवारन हार । सौ मर्म कही सुभ सार ॥६२।।