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भीपाल परित
দুম মানি
बहुत दिवस यौं बीते जांय । रह्यौ परभ सुदरि को ताम ॥ मनासुर के एन सार । भयो दोहरो निर्मल भाउ ।।१२।। यांन पुन्य परि रार्ष चित्त । माराधं जिन नाम पबित्तु।। पुन दोहरी उपज्यो जिसौ । सिरीपाल सब पुरयों तिसौ ॥१३॥ पूरे भए जब दस मास । जिन गुन गायत सुष विलास ।। भयौ पुत्र सब लक्षन सार । कुल ससिहर उगयो कुंवार ।।१४।। सब कुटंब आनंदित भयो । अतुल द्रव्य जाचिग जन दयौ ।। कह्यो जोयसी सव सुषषांम । पनपाल है याको नाम ॥१५॥ महीपाल ता पोर्छ भयो । तीजी पुत्र देवरथ व्यौं । चौथो भयो महारथ बरी । च्यारि भये मैंनासुदरी ॥१६॥ मंजुला जाए सुत सात । दुजन मंजन जिनके गात ॥ पांच पुत्र जाए गुनमाल । अति दलिष्ट अरु गुनह विशाल ॥१७॥ सव सुंदरी नि सुत उर घरे । एक हि एक रूप मागरे ।। कोटी भट सब सुत बरनए । भारसाहस पाठस भए ।।१८।। वा दिन दिन सबै कुवार । और ही रूप और व्यौहार ॥ मंडलेश्वर श्रीपाल नरिद । दीर्स मनी दूसरी इंद ॥१९॥
वोहा
जान ऐसो फल भयो, मिट्यो अशुभ सब कर्म ।।
यह जांनि मरलोक हो, पालौ जिनवर धर्म ॥२०॥ धर्म का महारभ्य
चौपई धम्म एक त्रिभुवन मैं सार । धम्मै कुगय विनासन हार ।। धम्म एक सब सुष की कंदु । धम्म एक मंजै दुह इंदु ॥२१॥ धर्म पसाइ गज गुजरं । धर्म पसाइ होस हय कर । धर्म पसाइ चवर सिर ढरे । धर्म पसाइ छत्र सिर पर ।।२२।। धर्म पसाय सुष अधिकार । धर्म पसाइ सबै नरपार ।। धर्म पसाई मुजस बिस्तरै । धर्म पसाइ सकल दुष हरै ।।२।। धर्म पसाइ रूप अधिकार । धम्म पसाइ सेवं नर पार ।। धम्म पसाइ सुजस बिस्तरै । धम्म पसाइ सकल में हर ॥२४॥