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________________ ५८ ! तब मंत्री बोल कर जोरि । स्वामी हमैं न दीजं पोरि || हम मंत्री बोले नृप जीति गर्दै हमारे कुल की भौति ॥ ०३॥ स्वामि धर्म इह बाहर होइ । रााची बात पयासं ॥ जो हम लाज करें सुनि रातो कुल रीति हमारी जाइ ॥८४॥ श्रीपाल चरिव अरु राजनि क इह सुभाउ । अब जानत है दसक दाउ || तत्र मंत्री लीजिये बुलाइ । बुके ताहि भेद निकुसाई ||२५|| सोई कर सबै छिटकाइ 11 1 जोह बात कहै समझाइ । और न मन त्या अधिकार ऐसे नृप कुल के प्राचार । ८६ ।। तालें बार बार उच्च :. जय की लालच करें || चूक हमारी कन माहि । नीकं करि देखो चित चाहि ||७|| मनमें रामस्य क हक राइ । मुङ करि तिनसों उठची रिसाइ || और बात मति ल्यायो चिल । सामग्री तुम करो पवित्त ॥६८॥ सुन्दरि बर को सीमा घरी । बेगे होह बार मति करो ।। सुनत दुःष मंत्री जन भयो । हरे बांस मंडर पर ठयौ | I लगन मंत्र का वन I चारि पंभ कंचन के बनें । चमके नम निर्मोलिक घनें ॥ च्यारि कलस इस सोवन जरे ते सोहे हूं घूंटह घरे ||६०|| श्ररु सोभा तिह विध प्रकार 1 मुक्काहल की बंदरबार ॥ ath सवासिन देहि सुचंग अति उज्जल देषियों श्रभंग ॥ ६१ ॥ अरु तहां निए सुरंग उछार सिनकी सोमा जगे अपार ॥ नन्ही चूनी दई फैलाई । ते चमक कछु कहियन जाइ ॥९२ । सबै सिवासनि रुदन करांहि । सोभा चौक संवारति जहि ॥ सज्जन लोग जुरें सब आइ । मलिन चित्त को नहि विकसाइ ॥ ६३॥ ठाठा घेर कर सब को अजुगति वात न ऐसी हो ।। विषना एह निरम । राजा की मति बिधु हरि लइ ।। ६४ ।। राजा राइ जुरे सब जिते । अथुपात करें तहां तित्ते ॥ अरु बाजैं वाजिन अपार । मेरि मृदंग र सहनार ६५ गहर सबद बाजें नीसांन । मलिन सबद अति सुनिएं कान ॥ विप्र वेद बुद्धि पढ़ें अपार । नरनारि रोवें अधिकार ॥ २६ ॥
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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